Tuesday, September 23

मोदी के साथ 18 घंटे काम करने में छूटे मंत्रियों के पसीने

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नईदिल्ली। रोजाना 18 घंटे काम करने और 4 घंटे सोने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ काम कर रहे मंत्रियों और अफसरों के इनदिनों पसीने छूट रहे हैं। इसकी वजह राजधानी दिल्ली की 45 डिग्री की गर्मी नहीं बल्कि काम के लंबे घंटे हैं। मोदी ने मंत्री बनने जा रहे नेताओं से साफ-साफ कहा था कि उनके साथ रोज 18 घंटे काम करने के लिए तैयार रहें। मोदी सरकार के दो मंत्रियों ने तो सार्वजनिक तौर पर मोदी के कामकाज के तौर तरीकों पर टिप्पणी की है। 42 साल के केेंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू से एक टीवी प्रोग्राम के दौरान जब मोदी के रोजाना 18 घंटे के काम के मुद्दे पर पूछा गया तो उन्होंने मुस्कुरा कर कहा, मुख्य समस्या यह है कि मोदी देर रात 1 बजे तक काम करने के बावजूद सुबह 5:30 बजे उठ जाते हैं और अपने रूटीन में व्यस्त हो जाते हैं। रिजिजू देर से सोकर उठने वालों में शामिल हैं, इसलिए उन्हें बहुत मुश्किल से सामंजस्य बिठाना पड़ा।
मोदी सरकार के एक अन्य मंत्रालय में जूरियर मंत्री की हैसियत से काम कर रहीं हरसिमरत कौर बादल ने भी पीएम के व्यस्त दिनचर्या का उदाहरण दिया। हरसिमरत ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा, एक दिन मोदी जी ने मुझे सुबह 9 बजे फोन कर 10 मिनट में मिलने के लिए बुलाया। मैं जो कुछ भी कर रही थी, उसे बीच में ही छोड़कर फौरन उनसे मिलने पहुंची क्योंकि मुझे पता है कि प्रधानमंत्री को देर से आने वाले लोग पसंद नहीं हैं।
सवाल उठता है कि क्या काम के लंबे घंटे का मतलब हमेशा अच्छा काम ही होगा या फिर नहीं? क्या इससे काम करने वाले पर बेवजह का दबाव नहीं बनता है? क्या इससे गलतियां नहीं होतीं?
काम के लंबे घंटे का मतलब अच्दा नतीजा नहीं
भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोजाना 18 घंटे काम कर रहे हैं, लेकिन, कॉरपोरेट वल्र्ड और राजनीति के क्षेत्र में काम कर रहे कई जानकारों का कहना है कि काम के लंबे घंटे का बेहतर नतीजों से सीधा संबंध नहीं है। ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनमिक को ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट के ताजा आंकड़े बताते हैं कि बहुत ज्यादा देर तक काम करने का अच्छा काम करने से कोई सीधा संबंध नहीं है। इसे कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है। ओईसीडी में सबसे ज्यादा मेहनत करने वालों में यूनानी लोग शामिल हैं। यूनानी लोग एक साल में 2000 घंटे से ज्यादा काम करते हैं शेष 7 पृष्ठ पर