Wednesday, September 24

120 जवानों के दम पर चीनी सेना को धूल चटा दी थी मेजर शैतान सिंह ने

major_shaitan_singh_3786572_835x547-mसन 1962  में भारत और चीन के बीच एक भयानक युद्ध हुआ इस युद्ध में चीन ने विजय प्राप्त की थी किन्तु इस युद्ध में भारत के कुछ ऐसे वीर सिपाही भी थे जिन्होंने बर्फीली पहाडियों में चल रहे युद्ध में भी चीनी सेना के पसीने छुड़ा दिए थे आज हम बात कर रहे हैं मेजर शैतान सिंह की जिन्होंने केबल 120 सिपाहियों के साथ मिलकर चीन की नाक में दम कर दिया था |

13वीं कुमाऊं बटालियन की चार्ली कंपनी चुशुल में मौजूद एयरफील्ड की रक्षा कर रही थी. चुशुल को गंवा देने का मतलब था   लद्दाख की सुरक्षा में सेंध, साथ ही यह उस समय भारत के लिए नाक की लड़ाई बन चुका था. एयरफील्ड की सुरक्षा पर निगरानी के बीच 18 नवंबर की सुबह चीन के लगभग 5000 सैनिकों ने इस जगह पर हमला कर दिया. गौरतलब है कि चीन के 5000 से ज्यादा सैनिकों के जवाब में उस समय भारत के महज 120 सैनिक ही मौजूद थे.लेकिन दुश्मन की परवाह न करते हुए इंडियन आर्मी ने जबरदस्त आक्रमण करने की ठानी और थोड़ी ही देर में दोनों तरफ से भयंकर गोलीबारी होने लगी. सैनिकों की तादाद के साथ ही चीन के पास आधुनिक हथियारों की भी कोई कमी नहीं थी, लेकिन भारतीय सैनिक जानते थे कि दुश्मन का डटकर मुकाबला करना ही एकमात्र उपाय है.असलहा-बारूद खत्म होने के बाद भी भारत के जवानों ने 1300 चीनी सैनिकों को मार गिराया और ये काम मेजर शैतान सिंह की देख-रेख में ही अंजाम दिया गया. कई जवानों ने तो अपने हाथों से इन सैनिकों को मार गिराया. पूर्व अधिकारी आर के यादव ने अपनी किताब ‘मिशन आर एंड डब्लू’ में रेज़ांगला की लड़ाई का वर्णन करते हुए लिखा है कि इन बचे हुए जवानों में से एक सिंहराम ने बिना किसी हथियार और गोलियों के चीनी सैनिकों को पकड़-पकड़कर मारना शुरु कर दिया. मल्ल-युद्ध में माहिर कुश्तीबाज सिंहराम ने एक-एक चीनी सैनिक को बाल से पकड़ा और पहाड़ी से टकरा-टकराकर मौत के घाट उतार दिया. इस तरह से उसने दस चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. इस युद्ध में 114 भारतीय सैनिक शहीद  हो गये थे  5 सैनिको को चीनी सेना ने बंदी बना लिय था , बंदी सैनिक भी बाद में उनकी कैद से बाख निकले थे | मेजर शैतान सिंह जब अपने सैनिकों को प्रोत्साहित करने के लिए एक पलटन से दूसरी पलटन की तरफ घूम रहे थे, तभी एक चीनी एमएमजी की चोट से वह घायल हो गए. लेकिन घायल होने के बावजूद उन्होंने लड़ना जारी रखा, जिसके बाद चीनी सेना ने उन पर मशीन गन से हमला कर दिया.भारतीय सैनिकों की बहादुरी से हारकर चीनी सैनिकों ने अब पहाड़ से नीचे उतरने का साहस नहीं दिखाया. और चीन कभी भी चुशुल में कब्जा नहीं कर पाया. हरियाणा के रेवाड़ी स्थित इन अहीर जवानों की याद में बनाए गए स्मारक पर लिखा है कि चीन के 1700 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था. हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है कोई नहीं जानता. क्योंकि इन लड़ाईयों में वीरगति को प्राप्त हुए जवानों की वीरगाथा सुनाने वाला कोई नहीं है. और चीन कभी भी अपने सेना को हुए नुकसान के बारे में नहीं बतायेगा. लेकिन इतना जरुर है कि चीनी सेना को रेज़ांगला में भारी नुकसान उठाना पड़ा.1963 की फरवरी में जब मेजर शैतान सिंह की बॉडी पाई गई, तब उनका पूरा शरीर जम चुका था और मेजर मौत के बाद भी अपने हथियार को मजबूती से थामे हुए थे.