Sunday, October 19

इधर बनी उधर उखडऩे भी लगी सड़क भ्रष्ट आचरण का डामर समय से पहले पिघला

गंजबासौदा। पिछले दो दिनों से रेलवे स्टेशन से लेकर बेहलोट बायपास बरेठ रोड तक सड़क का डामरीकरण का काम शुरू हुआ है। शुक्रवार को इस सड़क पर अभी डामर सूख भी न पाया था कहीं सड़क का डामर परत-दर-परत उखडऩे लगा है। जिससे सड़क की तत्कालीन गुणवत्ता का अंदाजा लगाना भी मुश्किल न होगा।
उल्लेखनीय है कि पिछले कई सालों से इस बायपास का इस्तेमाल आधे से ज्यादा बरेठ रोड निवासी स्टेशन पहुंचने के साथ स्कूल और अन्य स्थानों तक पहुंचने के लिए करते आ रहे है। इस कारण इस सड़क को बनाने की मांग लगातार अखबारों से लेकर जनता द्वारा उठाई जाती रही है। पिछले छह माह से जागरूकत लोग आम जन को आश्वस्त करते रहे कि यह सड़क स्वीकृत हो चुकी है। बस बनने ही वाली है। करीब एक माह इस सड़क को बनाने के लिए लाल मुरम डाली गई ताकि गड्डों को भरा जा सके। लेकिन लाल मुरम ने न केवल सड़क बल्कि लोगों के चेहरे, कपड़े और आंखे लाल कर दी। जैसे तैसे पानी छिड़ककर मुरम को दबाकर जनता की आकांक्षाओं को दबाने का प्रयास किया गया। लेकिन शुक्रवार को जैसे ही सड़क डाली गई तो वाहनों का निकलना शुरू हो गया। साथ ही डामरीकृत सड़क की उखड़ी परतों से सड़क की गुणवत्ता की परतें भी उभारना शुरू कर दिया है। ऐसे में कैसे उम्मीद करें कि इस सड़क की हालत मंडी निधि से बनी मील रोड बायपास से पचमा रोड कर्मा देवी चौक तक बनी सडक की तरह  न होगा। हमें कहने में गुरेज नहीं है कि सड़क बनाने की योजनाएं जनप्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर ठेकेदारों के बीच अंदरूनी खींचतान के साथ होती है। जितना स्वीकृत उतना तो ठीक आधा भी निर्माण पर खर्च नहीं हो पाता है। फिर गुणवत्ता की आशा कैसे की जा सकती है। मंडी निधि से करीब तीस लाख की पलोड़ पेट्रोल पंप वाली सड़क की गुणवत्ता सीमेंटेड सड़क पर डामर बिछाने तक की रही। कमोवेश यही हालत बेहलोट बायपास की होने वाली है। पता नहीं कैसे सड़ृकों की स्वीकृति होती है। जहां सीमेंट सड़क बनना चाहिए वहां डामर बिछा दिया जाता है। जिन सड़कों को डामरीकृत बनाया जाना चाहिए, सीमेंट सडृके बना दी जाती है। सड़को के निर्माण में उस पर से निकलने वाले वाहनों की क्षमता का आंकलन भी नहीं किया जाता है। जिसका हश्र सबके सामने होता है। सड़क बनी नहीं कि दुबारा बनाने की मांग उठने लगती है। फिर इंतजार का एक लंबा सफर जनता को कष्ट में भुगतना पड़ता है।