Wednesday, October 29

भारतीय सेना के स्पेशल कमांडो की ट्रेनिंग, रोज दौड़ते हैं 42 किमी

Betwaanchal news
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भोपाल। पठानकोट हमले में सेना के कमांडो की बहादुरी के चर्चे हर तरफ हैं। 15 जनवरी को भारतीय सेना दिवस भी है। खास ऑपरेशन के लिए तैयार इन जवानों की ट्रेनिंग बेहद कठिन और शरीर को थका देने वाली होती है। इस ट्रेनिंग में जो जवान खरा उतरता है, उसे ही स्पेशल फोर्स में शामिल किया जाता है।

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ये हैं भारत के स्पेशल फोर्सेस

– मार्कोस
यह कमांडो वैसे तो भारतीय नौ सेना के जवान होते हैं, लेकिन किसी भी स्थिति में लड़ाई लड़ने में सक्षम होते हैं। भारत के सबसे बेहतरीन कमांडो इन्हें माना जाता है। मार्कोस कमांडो को थ्री डाइमेंशन फोर्स भी कहा जाता है।
– पैरा कमांडोज
2015 में म्यामांर में सर्जिकल ऑपरेशन पैरा कमांडोज ने ही किया था। इन कमांडोज को दुश्मन के इलाके में घुसकर बिना कोई सबूत छोड़े ऑपरेशन करने के लिए जाना जाता है। ये कमांडाेज थल सेना के होते हैं।
– गरुड़ कमांडोज
भारतीय वायु सेना के इन कमांडोज ने भी पठानकोट एयरबेस में ऑपरेशन में हिस्सा लिया था। 6 गोली लगने के बाद भी 1 घंटे तक लड़ने वाला जांबाज गरुड़ कमांडोज फोर्स का था। ये हवा और पृथ्वी के माहिर होते है।
– एनएसजी
एनएसजी कमांडोज को ही ब्लेक कैट कमांडोज के नाम से जाना जाता है। 2008 के मुंबई हमले जैसे ऑपरेशन में एनएसजी फोर्स का उपयोग किया गया। इन कमांडोज को दुनिया के सबसे बहादुर कमांडोज में से एक माना जाता है।
क्यों कहते हैं स्पेशल फोर्सेज?
जबलपुर के रहने वाले कमांडोज मेंटर ग्रैंड मास्टर शिफुजी शौर्य भारद्वाज ने आर्मी डे पर dainikbhaskar.com से बातचीत में बताया कि स्पेशल फोर्सेज का मतलब होता है ‘नो केजुअलटी’। यदि स्पेशल फोर्स के 20 जवान लड़ने जाते हैं तो माना जाता है कि 20 जवान वापस लौटकर आएंगे। हालांकि कई दफा परिस्थितियों के कारण ऐसा नहीं हो पाता।
ऐसे होती है ट्रेनिंग :
– रोजाना 42 किमी दौड़ना
– 7 किमी पानी में तैरना
– 3200 पुशअप्स
– 25 अलग-अलग तरह की बेहद कठिन एक्टिविटी
– 42 किमी में से 12 किमी अपने से दोगुना वजन लेकर दौड़ना
– 22 घंटे की ट्रेनिंग, 2 घंटे की नींद
15 दिनों तक जागने की ट्रेनिंग
इन कमांडोज को इतनी ट्रेनिंग दी जाती है कि वे बिना खाए-पिये और सोए 15 दिनों तक लड़ाई करते रहें। ये कमांडोज 50 डिग्री से ज्यादा वाले रेगिस्तान और खून जमा देने वाले सियाचिन में भी लड़ाई के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
15 महीने से 3 साल तक की ट्रेनिंग
कमांडोज की यह ट्रेनिंग 15 महीने से 3 साल तक होती है। इसके बाद भी उन्हें हर दूसरे महीने में पहले के मुकाबले अपनी क्षमता लगातार बढ़ानी होती है।