नईदिल्ली। एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्र उठता है कि मुसलमानों द्वारा राजनीतिक स्वायत्तता प्राप्त करने के प्रयास से उत्तरप्रदेश में साम्प्रदायिक स्थिति कैसी होगी? उत्तर में कहा जा सकता है कि हर संभावना मे वहां की साम्प्रदायिक स्थिति में तीखापन आयेगा और चुनावों में मुसलमान उम्मीदवार, हिन्दुओं की सहानुभूति बटोरने में पिछड़ जाएंगे। बहुत अधिक निर्भर होगा कि मुसलमानों की रणनीति क्या होगी? क्या वे अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेंगे अथवा समाज के अन्य वर्गों को अपने साथ लेकर चलना पंसद करेंगे? परंतु दोनों मुस्लिम फ्रंटों का नेतृत्व कट्टर धार्मिक गुरूओं के हाथों में रहता तो मुसलमानों की स्वायत्तता प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा के विपरीत घट सकता है और इस बात पर भी निर्भर करेगा कि यह स्थिति मुसलमानों में मजहबी विचार या लगाव बहुत प्रभावी रोल अदा करती है। इस कारण राजनीति में मुसलमानों की स्वायत्तता कोई विशेष मायने नहीं रखती। ऐसी स्वायत्तता महज दूर का स्वप्र है।
उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए इस्लाम के आधार पर राजनीतिक फ्रंट का निर्माण इस आरोप को मजबूत करने में सहायक होगा कि ऐसे मुस्लिम फ्रंट साम्प्रदायिक विभेद फैलाने के उद्देश्य से तैयार किए गए हैं। यह स्थिति उन उदार धर्मनिरपेक्षवादियों के पक्ष को कमजोर करेगी जो मुसलमानों को पूरी सुरक्षा देने के लम्बे समय से पक्षधर रहे हैं। पंरतु पीडीएफ के चेअरमेन जावेद उलटवार करते हुए कहते हैं कि यदि मायावती शेड्यूल कास्ट और शेड्यूल बाइब लोगों के हितों की सुरक्षा हेतु बसपा जैसा संगठन बना सकतीं हैं तो मुसलमानों के हितों की रक्षार्थ बनाया जाने वाला फ्रंट किस प्रकार किसी को हानिकारक हो सकता है? कांग्रेसी नेता व केन्द्रीय मंत्री सैफुद्दीन सोज ने मुसलमानों के इस कदम को अधोमुखी उल्टे मुंह गिरने वाला कदम बताया और कहा कि मुस्लिम मौलवियों द्वारा आगे बढ़ाई जा रही विभेदकारी शक्तियाँ कुछ और नहीं कर सकतीं, केवल आर.एस.एस. जैसी शक्तियों को ही मजबूत करेंगी, असम प्रदेश की तरह नहीं, जहां मुस्लिम संगठन बनाकर कांग्रेस के साथ मिलकर शासन में आ गए हैं। इस स्थिति को दुहराना उत्तरप्रदेश के मुसलमानों को आकर्षक लग सकता है परंतु प्रश्र यह कि क्या एक स्वायत्त मुस्लिम राजनीतिक संगठन उत्तरप्रदेश में निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या में वृद्धि कर सकेगी? या इसके उन्हें उल्टे फल ही प्राप्त होंगे? विभिन्न राजनीतिक दल मुसलमानों को चुनावों में टिकट देकर अपनी ओर आकर्षित करते हैं। परंतु यदि मुसलमान सभी पार्टियों के मुकाबले अपने निजी संगठन सभी पार्टियों के मुकाबले अपने निजी संगठन के झंडे तले चुनाव लडऩे का संकल्प करते हैं।