Thursday, September 25

नफरत की रार पर वोटों की खेती

प्रदीप राजपूत
imamभोपाल। आज पूरे देश में लोकसभा चुनाव का जोर चल रहा है और पहलीबार ऐसा देखने में आ रहा है कि सभी जगह से लोग किसी एक व्यक्ति का नाम प्रधानमंत्री के रूप में रख रहे हैं। चारों ओर से सिर्फ और सिर्फ मोदी की पुकारा सुनाई दे रही है। आस्थिर हुई राजनीति में एक आशा की किरण मोदी के रूप में दिखाई दे रही है। यदि यह चुनाव सीधे चुनाव प्रणाली से हो रहा होता तो शायद मोदी को भी इतनी दिक्कतों का सामना न करना पड़ता। सत्ता आते दिखते ही वर्षों से पार्टी का मुखिया बने लोगों की भी महत्वाकांक्षाऐं जाग उठी हैं। यह तो रही मोदी की स्वयं पार्टी की बात पर मोदी को रोकने के लिए विपक्षी पार्टियों को कितने पापड़ बेलने पड़ रहे हैं।
कोई मुल्ला-मौलबियों का सहारा ले रहा है तो कोई मुल्लाओं जैसा भेश रख रहा है तो कोई मुल्लाओं से फतवा जारी करवा रहा है। दु:ख इस बात का है कि भारत जैसी भूमि में इन जयचंदों से कब मुक्ति मिलेगी। भारत में सर्वेभंतुसुखें सर्वेसंतुनिरामया के सिद्धांत पर चलने वाली संस्कृति में इस तरह फतवों की राजनीति से देश का कितना फायदा होगा। भारत का कोई भी नागरिक यह नहीं कहता की किसी के साथ गलत व्यवहार करो। देश के सौ करोड़ लोगों के हित की बात हो पर जाति विशेष के धर्मगुरूओं द्वारा अपने धार्मिक स्थानों से देश को स्थिर करने के लिए फतवे जारी करते हैं तो दु:ख होता है और क्रोध भी आता है। अच्छा होता कि यह मुल्ला-मौलवी यह फरमाते कि देश के सभी मजहव व जाति समुदाय के लोग अधिक से अधिक मतदान कर देश को एक अच्छी ईमानदार सरकार दें, जो पूरे देशवासियों का कल्याण कर सके । दु:ख सिर्फ यही नहीं है कि यदि कोई अंजाने में ही सही हार-हार मोदी के नारे लगा देता है तो उस पर पूरे देश में चर्चाऐं शुरू हो जाती हैं। चुनाव आयोग की भी नींद खुल जाती है धर्मगुरू भी आपत्ति दर्ज कराने लगते हैं। मुल्ला-मौलवियों की भाषा बोलने वाले जयचंद चैनलों पर चिल्लाना शुरू हो जाते हैं। सभी का मक्सद सिर्फ एक ही दिखाई देता है कि मोदी का विरोध करना।
इसबार का चुनाव ऐसा हो रहा है जिसमें वर्तमान केन्द्र की सरकार व उसकी नीतियों के खिलाफ कोई बात नहीं कर रहा है बल्कि देश की पूरी की पूरी राजनैतिक पार्टियां एक व्यक्ति विशेष पर आकर थम गईं हैं और उनके विरोध का क्षेत्र सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी बन कर रह गए हैं। इस काम को अकेले राजनैतिक पार्टियां ही पूरा नहीं कर रहीं हैं बल्कि देश का इलेक्ट्रोनिक मीडिय़ा भी इस कार्य में सहयोग कर रहा है। कॉमनबैल्थ घोटाला, टूजी घोटाला जैसे मुद्दे इस चुनाव से दूर दिखाई दे रहे हैं, देश में नफरत का रार चल रहा है और एक जाति विशेष के वोट पाने के लिए कहीं गोधरा का मुद्दा उठाया जा रहा है तो कहीं फैजावाद के दंगों पर मरहम लगा कर वोटों की खेती उगाने का काम चल रहा है, और देश के नागरिकों की मूल-भूत अपेक्षाओं को दरकिनार कर दिया गया है। जो नेता चुनाव के पहले भ्रष्टाचार की बड़ी-बड़ी बातें किया करते थे अब वो अपने भाषणों में भ्रष्टाचार का जिक्र तक नहीं कर रहे हैं। पूरे देश में मोदी को लेकर एक ऐसा माहौल निर्मित किया जा रहा है कि जो मोदी के आने से देश के अल्पसंख्यक लोग असुरक्षित हो जाऐंगे इसीलिए नरेन्द्र मोदी को अपने घोषणा पत्र जारी करते समय इस बात का जिक्र करना पड़ा कि यदि वह प्रधानमंत्री बनते हैं तो वह वदनियत से कोई कार्य नहीं करेंगे।
वैसे चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली से मतदाताओं की जागरूकता बड़ी है इसी से वोट का प्रतिशत भी बढ़ा है एवं देश में अपने मताधिकार का उपयोग करने कि उत्सुक्ता भी देखी जा रही है।