मनुष्य के जन्म, विवाह और मृत्यु जैसी जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को लेकर कई तरह की परंपराएं प्रचलित हैं। दुनिया में विभिन्न धर्म, समुदाय, जाति और समूहों के रीति रिवाज काफी अलग-अलग हैं। कुछ तो बेहद डरावने और घृणास्पद हैं।
परिवार के लोग शव का मांस खाते हैं: यह शायद दुनिया में अंतिम संस्कार का सबसे बुरा तरीका होगा। परिवार के लोग मृतक के मांस को खाते हैं। शायद इसके पीछे यह मान्यता होगी कि मरनु वाले की आत्मा और उसकी ताकत परिवार के लोगों को मिले। दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की कुछ जनजातियों के बीच इस तरह का विचित्र और घृणास्पद तरीका प्रचलित होने की बात कही जाती है। कई विद्वानों का मत है कि स्वार्थी साम्राज्यवादी यहां की जनजातियों पर मानव मांस खाने का झूठा आरोप लगाते रहे हैं। वहीं, एक मानव विज्ञानी नेपोलियन चैंगोंन के अनुसार दक्षिण अमेरिका की यानोमामो कम्युनिटी के लोग आज भी दाह संस्कार के बाद चिता से राख और हड्डियां खाते हैं।
कब्र से निकालने के बाद शव के साथ डांस: भले ही आपको यह सुनन में बेहद विचित्र लगे, लेकिन मेडागास्कर में मालगैसी जनजाति के लोगों के बीच ऐसी परंपरा प्रचलित है। शव को कब्र से बाहर निकाला जाता है। इसके बाद परिवार और नजदीकी रिश्तेदार डेड बॉडी को लेकर डांस करते हैं। इस संस्कार को फैमाडिहाना कहा जाता है। मान्यता है कि बॉडी गल जाने होने के बाद मृतक की आत्मा अपने पूर्वजों से मिलती है। हर साल साल बाद इसे उत्सव की तरह मनाया जाता है। इस मौके पर परिवार और रिश्तेदार सभी एकत्रित होते हैं।
मरने वाला न हो बोर, प्रोफेशनल स्ट्रिपर से कराते हैं डांस: चीन के डोंगहाई क्षेत्र में अंतिम संस्कार की विचित्र तरीका है। इस क्षेत्र में जब किसी व्यक्ति की मौत होती है तो डांस करने के लिए प्रोफेशनल स्ट्रिपर बुलाई जाती है। इसके पीछे मान्यता है कि मरने वाले की आत्मा को बोरियत महसूस नहीं हो। इस विचित्र परंपरा के बारे में कहा जाता है कि लोग अपना स्टेट्स दिखाने और अंतिम संस्कार में अधिक-अधिक भीड़ जुटाने के लिए ऐसा करते हैं। मीडिय़ा में इसकी खबरें आने के बाद सरकार ऐसे अंतिम संस्कारों पर नकेल लगा रही है।
घर में कई दिनों तक रखते हैं डेड बॉडी: इंडोनेशिया के ताना तोरजा क्षेत्र में अंतिम संस्कार की विचित्र परंपरा है। यहां मरने के बाद भी शव का अंतिम संस्कार कई दिनों हफ्तों, महीनों या सालभर तक भी नहीं किया जाता। मौत के बाद डेड बॉडी को कपड़े में लपेटकर घर में ही एक जगह रखा जाता है। इसके बाद जब शरीर में आत्मा दोबारा जागृत होती है, तब अंतिम संस्कार किया जाता है। कहा जाता है कि ताना तोरजा क्षेत्र की जनजातियों के लोग जादुई ताकत से डेड बॉडी में आत्मा को वापस बुलाते हैं। इससे शव चलते हुए अंतिम संस्कार स्थल पर पहुंचता है।
शव खुले में छोड़ देते हैं: तिब्बत का खराब मौसम और पथरीली जमीन होने के कारण शव का दफनाना काफी मुश्किल काम है। तिब्बत में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग डेड बॉडी में आटे का लेप करते हैं और इसे खुले में छोड़ देते हैं, ताकि मांसभक्षी पक्षी इसे खा लें। अंतिम संस्कार की इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि जीवात्मा के लिए शरीर एक अस्थाई निवास स्थान था। इसे वापस प्रकृति में विलीन हो जाना चाहिए।