कड़े नियम ला
गु करने का विचार बना रहा अमेरिका
भारत अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट के लिए कड़े नियम लागू करना चाहता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आयातित दूध ऐसी गायों के हों जिन्हें जानवरों के मांस या ख़ून वाला चारा न खिलाया जाता हो। डेयरी को लेकर भारत ने रक्षात्मक रुख़ अपनाया है क्योंकि यह क्षेत्र देश में करोड़ों लोगों को आजीविका मुहैया कराता है, जिनमें अधिकांश छोटे किसान हैं। हालांकि, अमेरिका ने इसे ग़ैर ज़रूरी व्यापारिक बाधाएं (ट्रेड बैरियर्स) कहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बातचीत विफल हो जाती है, तो इसकी कम संभावना है कि ट्रंप भारत पर 26% टैरिफ़ दर को फिर से लागू करेंगे। दरअसल अमेरिका भारत के साथ अपने तक़रीबन 45 अरब डॉलर के व्यापार घाटे को कम करने के लिए कृषि और डेयरी निर्यात के लिए दरवाज़े खोले जाने की मांग कर रहा है। हालांकि ट्रंप प्रशासन की ओर से 23 देशों को चिट्ठी भेजी गई है और टैरिफ़ की समयसीमा एक अगस्त तक के लिए बढ़ा दी गई है।
ग्रामीण भारत अर्थव्यवस्था में डेयरी सेक्टर का अहम योगदान
भारत सरकार के ब्यूरो के मुताबिक़, साल 2023-24 में देश में 23.92 करोड़ टन दूध का उत्पादन हुआ था. कुल दूध उत्पादन में दुनिया में भारत का पहला स्थान है। भारत ने 2023-24 में 27.26 करोड़ डॉलर के 63,738 टन दुग्ध उत्पाद का निर्यात किया था. सबसे अधिक निर्यात यूएई, सऊदी अरब, अमेरिका, भूटान और सिंगापुर को होता है। डेयरी उत्पादों के आयात पर भारत में अच्छा ख़ासा टैरिफ़ है. भारत में चीज़ (एक प्रकार का पनीर) पर 30 प्रतिशत, मक्खन पर 40 प्रतिशत और मिल्क पाउडर पर 60 प्रतिशत टैरिफ़ लगाया जाता है। यही वजह है कि न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से ये उत्पाद आयात करना लाभकारी नहीं है, जबकि इन देशों के डेयरी उत्पाद सस्ते हैं। अगर भारत अमेरिकी डेयरी उत्पादों के लिए अपने बाज़ार खोलने का निर्णय लेता है तो उसे भारी नुक़सान उठाना पड़ सकता है। भारतीय स्टेट बैंक की हाल में ही आई एक रिपोर्ट के मुताबिक़, अगर अमेरिकी डेयरी उत्पादों को इजाज़त दी जाती है तो इससे भारतीय दुग्ध उत्पाद के दाम कम से कम 15% गिर जाएंगे और इससे किसानों को हर साल 1.03 लाख करोड़ रुपए का नुक़सान हो सकता है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि डेयरी उत्पाद खोलने की वजह से भारत दुग्ध उत्पादक देश से दुग्ध उपभोक्ता देश बन सकता है।