
अरुणाचल प्रदेश में हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के लिए बड़े जंगल की कटाई हो रही है। अरुणाचल सरकार इसकी भरपाई करीब 2100 किमी दूर मध्य प्रदेश में करेगी। यहां 23 हजार हेक्टेयर में जंगल विकसित होगा। इसके प्रस्ताव के बाद प्रदेश में जमीन ढूंढ़ी जा रही है। वन विभाग ने भी बड़ी नदियों के किनारों को हरा-भरा बनाने की योजना बना ली है। अधिकांश पौधरोपण के लिए नदियों के किनारे की ऐसी जमीन ढूंढ़ी जा रही है, जहां सघन वन क्षेत्र नहीं है।
ने नदियों के दोनों किनारों पर हरियाली बिखेरने की योजना बनाई है। नर्मदा, क्षिप्रा, बेतवा, कालीसिंध, चंबल आदि नदियों के किनारे रिहेबिलिटेशन ऑफ डीग्रेडेड फॉरेस्ट वाली जमीन ढूंढ़ी जा रही है। यहां पौधों का घनत्व कम है। सघन वन विकसित होने से नदियों किनारे छांव होगी।
में 50 हजार मेगावॉट हाइड्रो इलेक्ट्रिक उत्पादन की क्षमता आंकलित की गई है। दिबांग मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट पर पहले से काम चल रहा है। 2024 में केंद्र ने अरुणाचल में 3,689 करोड़ के दो हाइड्रो प्रोजेक्ट को भी मंजूरी दी। इनमें बड़ी बाधा वन विभाग की एनओसी थी। अरुणाचल का कुल क्षेत्रफल 83,743 वर्ग किमी है। अधिकांश वन भूमि है। ऐसे में जंगल की भरपाई के लिए वहां जमीन नहीं है, इसलिए मध्य प्रदेश से मांगी।
अंडमान निकोबार भी वनक्षति की भरपाई के लिए मप्र में 1405 हेक्टेयर में पौधरोपण कर चुका है। देवास, कटनी और रायसेन में 1405 हेक्टेयर वन भूमि पर पौधरोपण किया था। इसके लिए मप्र केा कैम्पा फंड से 20 करोड़ रुपए मिले थे।
अरुणाचल के पास वनीकरण को जमीन नहीं है। मप्र से जमीन मांगी है। हम जमीन दे रहे हैं। नदियों के किनारे जंगल विकसित करेंगे।