Monday, September 22

नरक चतुर्दशी को नरक चौदस आदि नामों से भी जानते हैं। इस दिन लोग घरों में दीये जलाते हैं। 

नरक चतुर्दशी के दिन यम दीप जलाने का विशेष महत्व है, इसके अलावा हर घर में रोशनी की जाती है और कम से कम 14 दीये जलाए जाते हैं। इससे दिवाली जैसा ही नजारा होता है।  पुरातन काल में नरकासुर नामक एक राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवता और साधु संतों को परेशान कर दिया था। नरकासुर का अत्याचार इतना बढ़ने लगा कि उसने देवताओं और उस समय के संतों की 16 हजार स्त्रियों को बंधक बना लिया। नरकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर समस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया।

नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का श्राप था, इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों को आजाद कराया और उनसे विवाह किया। बाद में ये सभी स्त्रियां भगवान श्री कृष्ण की 16 हजार पटरानियों के नाम से जानी जानी गईं।

एक अन्य पौराणिक कथा में दैत्यराज बलि को भगवान श्री कृष्ण द्वारा मिले वरदान का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य, धरती, आकाश और पाताल लोक को 2 कदम में नाप दिया था और तीसरा कदम कहां रखें, इसके लिए राजा बलि से पूछा।

वचन के पालन के लिए परम दानी बलि ने अपना सिर भगवान के चरणों में रख दिया, और भगवान ने अपना तीसरा पैर बलि के सिर पर रख दिया। बलि की वचन पालन की निष्ठा से प्रसन्न होकर भगवान वामन ने बलि से वरदान मांगने को कहा।