Monday, September 22

मोदी सरकार ने नए साल 2025 में लंबित चल रही दशकीय जनगणना कराने की तैयारी की है।

मोदी सरकार ने नए साल 2025 में लंबित चल रही दशकीय जनगणना कराने की तैयारी की है। पहली बार डिजिटल जनगणना होगी। इसके लिए विशेष पोर्टल भी तैयार हो रहा है। गणना करने वाले कर्मी टैबलेट लेकर घर-घर जाकर आंकड़े जुटाएंगे और रियल टाइम पर पोर्टल पर अपलोड करेंगे। भारत का महापंजीयक और जनगणना आयुक्त कार्यालय इसकी तैयारियों में जुटा है। यों तो अभी जातिगत जनगणना कराने पर अंतिम निर्णय नहीं हुआ है, लेकिन सरकार ने इस मुद्दे पर गंभीर होने के संकेत दिए हैं। सूत्रों का कहना है कि जातिगत जनगणना हुई तो मुसलमानों की भी जातियां गिनी जाएंगी। बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह सवाल उछाला था कि हिंदुओं को जातियों में बांटने वाली कांग्रेस कभी मुसलमानों की जातियां क्यों नहीं देखती? माना जा रहा है कि विपक्ष के जातिगत जनगणना के मुद्दे को कमजोर करने के लिए सरकार इस दिशा में भी आगे बढ़ सकती है।

अंग्रेजों ने साल 1872 से 1931 तक जितनी बार भी जनगणना कराई, उसमें जाति के आंकड़े भी जुटाए गए। आजाद भारत में 1951 में हुई पहली जनगणना से केवल अनुसूचित जाति और जनजाति के आंकड़े ही जुटाए गए। राजनीतिक दबाव में 2011 तत्कालीन यूपीए सरकार के समय सामाजिक-आर्थिक-जातिगत जनगणना हुई लेकिन आंकड़े जारी नहीं हुए। केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान दायर हलफनामे में कहा था कि ‘साल 2011 में जो जातिगत जनगणना हुई थी, उसमें कई स्तर की खामियां थीं जिससे निकले आंकड़े गलत और अनुपयोगी थे। केंद्र के मुताबिक देश में 1931 में हुई आखिरी जातिगत जनगणना में कुल जातियों की संख्या 4,147 थी, जबकि 2011 में हुई जाति जनगणना में जातियों की संख्या 46 लाख से ज्यादा निकली थी।