आरक्षित वर्ग अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को कोटे के भीतर कोटा देने और क्रीमी लेयर का आरक्षण समाप्त करने के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद राजनीतिक दलों की उलझनें बढ़ गई हैं।
आरक्षित वर्ग अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को कोटे के भीतर कोटा देने और क्रीमी लेयर का आरक्षण समाप्त करने के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद राजनीतिक दलों की उलझनें बढ़ गई हैं। फैसला सामने आने के 24 घंटे बाद भी वे यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि इसका स्वागत करें या विरोध। सूत्रों का कहना है कि भाजपा की नजर, दलित वर्ग से इस फैसले पर आ रही प्रतिक्रियाओं पर है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी फैसले पर चुप्पी साध ली है।राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि फैसला लागू होने के बाद पार्टियों को ‘अग्निपथ’ पर चलना होगा। राज्यों में एससी-एसटी वर्ग का नया नेतृत्व सामने आएगा और एक नई राजनीति का उभार भी देखने को मिल सकता है। पार्टियां फैसले का बारीकी से अध्ययन कर पता लगा रही हैं कि इसका उनकी भावी राजनीति पर क्या असर होगा।
फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे
इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने जातियों का वर्गीकरण करने को कहा है। यह भी कहा कि पहली पीढ़ी को मिल गया तो दूसरी पीढ़ी को नहीं मिले। क्रीमीलेयर के लिए भी कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर कार्य किया है। वर्गीकरण करने को कह दिया, इसमें कोई गलत नहीं है। एससी-एसटी आरक्षण का 2-3 प्रतिशत आबादी को लाभ मिला है, 90 प्रतिशत से अधिक लोगों को इसका लाभ नहीं मिला है।
-पी एल पूनिया, पूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय एससी आयोग
विरोध करने वाले अपना हित देख रहे
आरक्षण का लाभ सबसे वंचित दलित और आदिवासी समुदायों के बीच वितरित करने में सरकार की विफल रही है। नरेंद्र मोदी सरकार को एससी और एसटी को उप-श्रेणियों में वर्गीकृत करने के लिए काम शुरू करना चाहिए। कुछ समुदाय आरक्षण से सबसे ज्यादा लाभान्वित हो रहे हैं जबकि अन्य को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। दलितों में जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, वे केवल अपने समुदाय के हित को देख रहे हैं, समग्र दलितों के हित को नहीं।