Monday, September 22

SCs, STs creamy layer Reservation : ओबीसी में पहले से ही सब-कैटेगरी , आंध्रप्रदेश में SC को कर दिया था 4 भागों में विभाजित

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में चिन्नैया मामले के इसी फैसले को पलटा है। चिन्नैया मामले में पांच जजों की पीठ ने माना कि अनुसूचित जाति श्रेणी का उप-वर्गीकरण स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने इस मामले में आंध्र प्रदेश अनुसूचित जाति (आरक्षण का युक्तिकरण) अधिनियम, 2000 को असंवैधानिक माना

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी-एसटी) में सब कैटेगरी बनाने के राज्यों के अधिकार को भले ही अब जायज माना हो लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में पहले से ही पिछड़ा(बीसी), अति-पिछड़ा(एमबीसी), विशेष पिछड़ा (एसबीसी) जैसी सब कैटेगरी बनाने की व्यवस्था है। सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में ओबीसी के वर्गीकरण को उचित ठहराया था। चिन्नैया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इंद्रा साहनी का निर्णय अनुसूचित जाति के उप वर्गीकरण पर लागू नहीं होता है, क्योंकि निर्णय में स्वयं निर्दिष्ट किया गया है कि ओबीसी का उपविभाजन अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होता है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में चिन्नैया मामले के इसी फैसले को पलटा है। चिन्नैया मामले में पांच जजों की पीठ ने माना कि अनुसूचित जाति श्रेणी का उप-वर्गीकरण स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने इस मामले में आंध्र प्रदेश अनुसूचित जाति (आरक्षण का युक्तिकरण) अधिनियम, 2000 को असंवैधानिक माना। उस कानून ने अनुसूचित जातियों के बीच आरक्षण के लाभ को इस आधार पर चार समूहों में विभाजित किया था कि विभिन्न जातियों में परस्पर पिछड़ापन है। चिन्नैया मामले में न्यायालय ने माना कि एक बार जब जाति को अनुच्छेद 341(1) के तहत राष्ट्रपति द्वारा एससी-एसटी की सूची में डाल दिया जाता है, तो वह एक समरूप वर्ग बन जाता है, उक्त जाति का कोई और विभाजन नहीं हो सकता।

पंजाब का मामला आया था सुप्रीम कोर्ट में यह था मामला

पंजाब सरकार ने 1975 में आरक्षित सीटों को दो भाग में बांटकर एससी के लिए आरक्षण नीति बनाई थी। एक श्रेणी वाल्मीकि और मजहबी सिखों के लिए और दूसरी श्रेणी अन्य एससी जातियों की थी। यह नीति 30 साल तक लागू रही। इसके बाद साल 2006 में यह मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचा। हाईकोर्ट ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2004 के फैसले के आधार पर इस नीति को रद्द कर दिया गया। इस पर पंजाब सरकार 2006 में वाल्मीकि और मजहबी सिखों को कोटा देने के लिए फिर एक नया कानून बनाया। इसे 2010 में फिर से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने नए कानून को भी रद्द कर दिया तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने 2020 में पाया कि चिन्नैया मामले के फैसले पर एक बड़ी बेंच में फिर से विचार की जरूरत है। इसके बाद सीजेआइ के नेतृत्व में सात जजों की बेंच बनाई गई। बेंच ने जनवरी 2024 में तीन दिन तक मामले की सुनवाई कर फरवरी में फैसला सुरक्षित रख लिया।