दुश्मन पाकिस्तान के छक्के छुड़ा कर ‘करगिल विजय’ हासिल करने को शुक्रवार को 25 साल पूरे हो रहे है। युद्ध में शहीद हुए जवानों को नमन और बहादुरी दिखाने वालों के साहस को सलाम।
इसी पर डालते हैं नजर…
प्रेरणा – वीरांगनाओं ने बेटों को भेजा सेना में करगिल शहीदों की वीरांगनाओं ने अपने बच्चों को पिता की शहादत से प्रेरणा लेकर सीमा की रक्षा के लिए सेना में भेजा। राजस्थान की वीरभूमि झुंझुनूं के हवलदार शीशराम गिल दुश्मन के छह सैनिकाें को मारकर शहीद हुए थे। वीरांगना मां संतरा देवी की प्रेरणा से उनके बेटे कैलाश गिल पिता का सपना पूरा करने के लिए सेना में हवलदार हैं। राजस्थान के राइफलमैन विक्रमसिंह तंवर ने दुश्मन से मुकाबला करते हुए नौ गोलियां खाई और शहीद हुए। उस समय चार साल के नीरज आज सेना में हैं। उनकी वीरांगना मां कृष्णा कंवर ने पापा की वर्दी बेटे को दी। करगिल शहीद ओमप्रकाश के बेटे विजय सिंह भी वीरांगना मां कलिया देवी की प्रेरणा से सेना में हैं।
गर्व- आज भी लोग करते हैं याद
करगिल के जुलू टॉप पर 5 पाकिस्तानी सैनिकों के खात्मे और 130 को खदेड़ने वाले जांबाज शहीद स्क्वाड कमांडर नायक कौशल यादव की 84 साल की मां धनवंता देवी आज भी गर्वित है। भिलाई (छत्तीसगढ़) में रह रहीं शहीद कौशल की मां को गर्व इस बात का है कि बेटे की बहादुरी को आज 25 साल बाद भी लोग नहीं भूले।वे कहती हैं कि कौशल बचपन से ही खिलौना राइफल से खेलता था और बड़ा हुआ तो शहीद होकर अपना नाम अमर कर गया। बहादुरी के लिए कौशल को मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा गया।
जुनून- 48 को अकेले मारा कोबरा दिगंत ने
करगिल युद्ध में जीत का जुनून ऐसा था कि राजस्थान के जांबाज कोबरा हवलदार दिगेंद्र कुमार ने अकेले पाकिस्तान के 48 दुश्मनों को ठिकाने लगाया और दुश्मन के मेजर का गला काटकर टोलोलिंग चोटी पर तिरंगा फहराया। दिगेंद्र ने बताया कि उनके पास कुल 18 ग्रेनेड थे जिन्हें 11 बंकरों में डालकर पाकिस्तानियों को उड़ा दिया। इस हमले में पूरी यूनिट ने 70 से अधिक पाकिस्तानियों का खात्मा किया था। टोलोलिंग की जीत करगिल युद्ध में टर्निंग पॉइंट मानी जाती है। इस चोटी पर दुश्मन के कब्जे के कारण पूरे युद्ध क्षेत्र में भारत की सप्लाई लाइन प्रभावित हो रही थी। इस चोटी पर कब्जे से भारतीय सेना के मनोबल व उत्साह में भारी बढ़ोतरी हुई।