Tuesday, September 23

संस्कृति का मतलब जीवन जीने का तरीका है-सदगुरु जग्गी वासुदेव

5_1429304288भोपाल. मूल्य आधारित जीवन, अच्छे संस्कार, धर्म व कर्म से ही जिया जा सकता है। संस्कृति का मतलब जीवन जीने का तरीका है। वहीं, धर्म का मतलब प्रकृति के नियमों का पालन करना। कर्म का मतलब शारीरिक के साथ मानसिक परिश्रम है। मनुष्य अगर धर्म व कर्म का पालन करने लगे तो उसका जीवन सफल है। भारत में इस जीवन शैली के संस्कार हजारों वर्ष पुराने हैं। यही वजह है कि यहां अनेक आर्थिक विषमताओं के बावजूद लोग खुश रहते हैं।

इस देश का नाम भारत केवल राजा भरत के नाम पर ही नहीं पड़ा है। इसका शाब्दिक अर्थ काफी गहरा है। भारत शब्द में भाव, राग आैर ताल का मिश्रण है। इसका मतलब संवेदना, जीवन की धुन और रिदम है। इतिहास बताता है कि यहां कृषि व व्यापार काफी फलता-फूलता रहा है।
हमेशा से ही शांतिपूर्ण माहौल के कारण ही भारत एक विकसित संस्कृति के रूप में फला-फूला। भारत ही ऐसा देश है, जहां लोगों के मन में शांति है। हमारे देश के पुलिस थानों में पुलिसवालों की संख्या कम होने के बावजूद लोग लूटपाट नहीं मचाते। अराजकता नहीं है। भारत में हमेशा से ही लोगों का लक्ष्य मुक्ति रहा है। बाकी चीजें इसके बाद आती हैं।
मगर पिछले तीस-चालीस सालों में लोगों की प्राथमिकता बदली हैं। हमें जानना चाहिए कि आर्थिक संपन्नता जरूरी है लेकिन यह भी देखना होगा कि इससे कहीं हम कुछ खो तो नहीं रहे। सर्वाइवल का मतलब केवल जीवन जीने का लक्ष्य नहीं बल्कि जीवन जीने की कला है। हमारी संस्कृति ने संसार को जीवन के इन्हीं मूल्यों की विरासत सौंपी है। हमें हर पल यह याद रहना चाहिए कि मनुष्य के रूप में जन्म लेना जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना है। इसलिए लोक कल्याण हमारा लक्ष्य होना चाहिए। अपने हर क्रियाकलाप के प्रति हम चैतन्य हों। उसी स्थिति में हम मूल्यों का मतलब समझ पाएंगे। भारतीय जीवन मूल्यों में हमें संसाधनों के उपयोग की सही सीख मिलती है।’’
संस्कृति विभाग, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विवि ने विधानसभा सभागार में इस परिसंवाद का आयोजन किया। अध्यक्षता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की। कुलपति प्रो. बीके कुठियाला समेत कई प्रबुद्धजन उपस्थित थे। 18 अप्रैल को भी कई सत्र होंगे।