Tuesday, October 21

आदिवासी क्षेत्र में 90 फीसदी मतदान, क्या चाहती है यहां की जनता?

आदिवासी बाहुल्य रतलाम के सैलाना विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं ने 90.08 फीसदी मतदान कर सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। दिवाली के बाद लोकतंत्र के इस उत्सव में भागीदारी निभाने आदिवासी वोटर ने दूरस्थ इलाकों व पथरीली पगडंडी की भी परवाह नहीं की। सुबह धीमी शुरुआत हुई, लेकिन 11 बजे के बाद मतदान ने रफ्तार पकड़ी और रात आठ बजे तक कई बूथों पर मतदाता डटे रहे। पुरुषों का मतदान प्रतिशत 91.32 तो 88.86 फीसदी महिलाओं ने वोट डाले। रिकॉर्ड तोड़ मतदान का प्रमुख कारण दिवाली के मद्देनजर गुजरात और राजस्थान से आदिवासी परिवारों के घर आने, देवउठनी एकादशी तक अपने क्षेत्र में रहना है। देवउठनी पर खेती संबंधी कई कार्य किए जाते हैं। मछुआरों तक पहुंचे पत्रिका के जागो जनमत अभियान के तहत महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ मिलकर आयोजन किए गए। मतदाताओं को जागरूक करने टीम ईंट-भट्टों तक पहुंची। नाव से जाकर मछुआरों को समझाइश दी।

खाद-बीज के असर से अच्छी फसल

रिटर्निंग अधिकारी मनीष जैन के अनुसार यहां वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनाई गई। सभी समाज प्रमुखों से बातचीत की गई। बीएलओ के लिए प्रोत्साहन राशि रखी गई तो स्वीप के तहत खूब गतिविधियां आयोजित की गईं। पिछले करीब दो माह से हम यहां प्रयासरत थे। समय-समय पर खाद-बीज डालते रहे, जिसका परिणाम मतदान प्रतिशत के रूप में मिला। एक अन्य कारण यहां दीपावली के तुरंत बाद मतदान तिथि का होना भी है। कई आदिवासी परिवार दिवाली पर आए और अब मतदान कर देवउठनी के बाद जाएंगे।

पिछले दो चुनाव 88.35 प्रतिशत मतदान
2018 में 83.40 प्रतिशत वोट डले थे
2013 के चुनाव में कुल मतदाता- 210101
मतदान किया- 189250
पुरुष मतदान- 94914
महिला मतदान- 94336
वोट प्रतिशत 54.34

सोये रहे जोबट के लोग और प्रशासन

जोबट (अलीराजपुर). मतदान में अधिकतम मतदाताओं की सहभागिता के लिए प्रशासन के जागरूकता अभियान के दावों की पोल खुल गई, क्योंकि जोबट में प्रदेश में सबसे कम मतदान 54.34त्न ही हो पाया। यह आंकड़ा चुनाव आयोग सहित जिला प्रशासन के उन दावों की पोल खोलता नजर आ रहा है, जिनमें स्वीप अभियान के तहत पिछले कई महीनों से प्रशासन की मशीनरी लगी हुई थी। कम मतदान का मुख्य कारण रोजगार के लिए गुजरात सहित प्रदेश के अन्य जिले में गए ग्रामीण हैं, जो मतदान के लिए घर नहीं लौटे। प्रशासन जोर-शोर से प्रचार करने में लगा रहा कि ग्रामीणों को वापस लेकर आएंगे। चुनाव बाद वापस उनके कार्यस्थल पर छोड़ दिया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। दूसरा प्रमुख कारण आदिवासी समाज के भील और भिलाला वर्ग की संख्या ज्यादा है। भील ज्यादा पलायन करते हैं, क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है। घर में बुजुर्ग बचते हैं, जो बूथ तक जाने में असमर्थ रहे। प्रशासन भी उन्हें मतदान करवाने के प्रति गंभीर नहीं रहा।