समान नागरिक संहिता (UCC) भाजपा का बड़ा एजेंडा है। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इसे लागू करने की पहल तेज हो गई है। लॉ कमीशन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर नई कंसल्टेशन प्रक्रिया शुरू कर दी है। लॉ कमीशन ने धार्मिक संगठनों और आम लोगों से समान नागरिक संहिता पर राय मांगी है। राजनीति के जानकारी इस कदम को भाजपा (BJP) को बड़ा मास्टरस्ट्रोक बता रहे हैं। जानकारों का कहना है कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले समान नागरिक संहिता को लागू कर भाजपा अपने बड़े एजेंडे को पूरा करते हुए अपने कोर वोटरों का विश्वास पार्टी पर और मजबूत करेगी। समान नागरिक संहिता पर शुरू हुई यह कवायद क्या है, इसे भाजपा का मास्टरस्ट्रोक क्यों कहा जा रहा है, पार्टी को इससे क्या फायदा मिलेगा… आइए जानते हैं इन सभी सवालों का जवाब इस रिपोर्ट में।
सबसे पहले जानिए UCC पर लॉ कमीशन ने क्या पहल शुरू की
बुधवार 14 जून को लॉ कमीशन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर नई कंसल्टेशन प्रक्रिया शुरू की। इसके तहत कमीशन ने सार्नजनिक और धार्मिक संगठनों से राय मांगी है। लॉ कमीशन की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि जो लोग समान नागरिक संहिता में रुचि रखते हैं वे अपनी राय दे सकते हैं।
आयोग ने विचार प्रस्तुत करने के लिए 30 दिन का समय दिया है। कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाले 22वें लॉ कमीशन ने इच्छुक लोगों से 30 दिन में अपने विचार अपने वेबसाइट या ईमेल पर देने के लिए कहा है।
इससे पहले 21वें लॉ कमीशन ने भी समान नागरिक संहिता पर अध्ययन किया था। लेकिन तब आयोग ने इस पर और चर्चा की जरूरत बताई थी। इस बात को 3 साल से अधिक समय बीत चुका है। अब नए सिरे से प्रक्रिया शुरू की जा रही है।
अब जानिए समान नागरिक संहिता है क्या
यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है देश में हर नागरिक के लिए एक समान कानून। अभी भारत में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं। लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर धर्म के लिए एक जैसा कानून हो जाएगा। हिंदू हो, मुसलमान, सिख या ईसाई सबके लिए शादी, तलाक,पैृतक संपत्ति जैसे मसलों पर एक तरह का कानून लागू हो जाएगा।
यूसीसी पर विरोधियों के तर्क
यूसीसी पर देश में हमेशा से विरोध भी होता रहा है। विरोधियों का यही कहना रहा है कि ये सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है। मुस्लिम समाज इस कानून के खिलाफ मुखर हो कर आवाज उठाता रहा है। मुस्लिम समाज के नुमाइंदों का कहना है कि हिंदूत्ववादी एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए भाजपा समान नागरिक संहिता बनाना चाहती है।
कई लोग इसे धर्मनिरपेक्षता से जोड़कर भी देखते हैं। संविधान के अनुसार भारत को धर्मनिरपेक्ष देश है। लेकिन बीते कुछ सालों में भारत में हिंदुत्ववादी परंपराओं को बढ़ावा मिला है। आरोप है कि सरकार जानबूझकर ऐसी परंपराओं को बढ़ावा दे रही है।
कांग्रेस ने पत्र जारी कर कहा- विफलताओं को छिपाने के लिए पुराने पैंतरे पर सरकार
समान नागरिक संहिता पर शुरू हुई ताजा पहल पर कांग्रेस ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने एक पत्र जारी करते हुए कहा कि सरकार ने अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए पुराना पैंतरा आजमाया है। उन्होंने कहा कि याद रखना चाहिए कि राष्ट्र के हित भाजपा की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से अलग हैं।
भाजपा की ‘तीसरी कसम’ है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता को भाजपा का तीसरी कसम भी कहा जाता है। दरअसल भाजपा के तीन प्रमुख एजेंडों में यूसीसी भी शामिल है। यूसीसी के अलावा राम मंदिर और आर्टिकल 370 भाजपा के दो बड़े एजेंडे थे। जो पूरे हो चुके हैं। अब समान नागरिक संहिता बाकी है। जिसे पूरा कर भाजपा अपने एजेंडे को पूरा करना चाहती है।
बीजेपी 1980 के दशक से इन तीनों मुद्दों को लगातार उठा रही है। बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात में राज्य सराकर यूसीसी पर चर्चा कर रहे हैं। उत्तराखंड में तो इसके लिए मसौदा तक तैयार हो चुका है।
यूसीसी भाजपा के लिए मास्टर स्ट्रोक क्यों?
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले समान नागरिक संहिता को लागू करवाने की पहल तेज करना भाजपा का मास्टरस्ट्रोक बताया जा रहा है। यह वो मुद्दा है कि जिसका मुस्लिम सहित अन्य अल्पसंख्यक वर्ग पुरजोर विरोध करता रहा है। इस मुद्दें को हवा देने से देश में हिंदू-मुस्लिम की राजनीति फिर तेज होगी। ऐसे में वोटों का वर्गीकरण होना तय है। जो भाजपा के फायदे का सौदा होगा।
समान नागरिक संहिता से जुड़े तथ्य
– यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर मजहब के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा। यानी मुस्लिमों को भी तीन शादियां करने और पत्नी को महज तीन बार तलाक बोले देने से रिश्ता खत्म कर देने वाली परंपरा खत्म हो जाएगी।
– वर्तमान में देश हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के अधीन करते हैं।
– फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिन्दू सिविल लॉ के तहत हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं।
– UCC के समर्थकों का तर्क है कि यह लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, धर्म के आधार पर भेदभाव को कम करने और कानूनी प्रणाली को सरल बनाने में मदद करेगा।
– विरोधियों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा और व्यक्तिगत कानूनों को प्रत्येक धार्मिक समुदाय के विवेक पर छोड़ देना चाहिए।