Wednesday, September 24

गुजरात चुनाव: इन 6 वजहों से गुजरात में भाजपा रच सकी इतिहास

गुजरात के लोगों का मोदी में अपना गर्व तलाशना

गुजरात चुनाव के नतीजों ने दिखा दिया है कि राज्य के लोगों के लिए आज भी मोदी गुजरात का गौरव हैं। प्रधानमंत्री रहते हुए भी उन्होंने अपने राज्य के साथ अपना कनेक्शन उतना ही मजबूत रखा है। यहां मोदी का जादू ना सिर्फ बरकरार है बल्कि बढ़ता जा रहा है। पीएम मोदी ने भी चुनाव से काफी पहले से ही यहां पूरा ध्यान दिया। कई सारे बड़े प्रोजेक्ट चुनाव से ठीक पहले वहां ले कर गए। इसी तरह लगातार रैलियां और रोड शो कर चुनाव को सीधे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया।

चुनाव विधानसभा के जरूर थे, लेकिन प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नाम का बहुत कंजूसी से ही उपयोग किया गया। रैलियों, पोस्टरों और होर्डिंग में मोदी ही दिखे।

अमित शाह का गुजरात में माइक्रो मैनेजमेंट का लंबा अनुभव

आज भाजपा के चुनावी प्रबंधन को पूरा देश जान गया है। अब तो हर छोटे-बड़े चुनाव को पार्टी बेहद गंभीरता से लेती है। वोटर लिस्ट के हर पन्ने के लिए एक प्रभारी या पन्ना प्रमुख तक तय किया जा रहा है। लेकिन इसकी शुरुआत मोदी और शाह की जोड़ी ने गुजरात से ही की थी। गुजरात की हर सीट के बारे में उनकी बारीक जानकारी और लंबा अनुभव काम आया।

राज्य में मुस्लिम मतों का विभाजन

राज्य में नौ फीसदी से ज्यादा मुस्लिम हैं। यहां की 17 सीटें ऐसी हैं जिन पर यह समुदाय निर्णायक भूमिका में रहता है, लेकिन यहां भी भाजपा को फायदा मिला। मुस्लिम समुदाय तीन जगह बंट गया। कांग्रेस तो उसकी पारंपरिक पसंद रहा ही है, इस बार ओवैसी की एआइएमआइएम ने भी अपने उम्मीदवार खड़े किए। इसी तरह कुछ वोट आम आदमी पार्टी को भी गए।

अहमद भाई थे नहीं, गहलोत और राहुल दिखे नहीं

लंबे समय से लग रहा था कि इस बार गुजरात में कांग्रेस के लिए अच्छा मौका है। भाजपा भी काफी परेशान दिख रही थी। पीएम और अमित शाह का राज्य पर फोकस, मुख्यमंत्री सहित पूरी कैबिनेट बदल देना ये कुछ ऐसे कदम थे, जिनसे लग रहा था कि भाजपा भी कांग्रेस को काफी गंभीरता से ले रही है। लेकिन लगता है कि कांग्रेस ने खुद को ही गंभीरता से नहीं लिया। राज्य में ना तो पार्टी का कोई चेहरा पेश किया गया और ना ही राहुल गांधी ने यहां कोई गंभीरता दिखाई।

पिछले चुनाव में राहुल, अहमद पटेल और अशोक गहलोत ने यहां पूरा जोर लगाया था और उसका काफी फायदा पार्टी को मिला था। तब इसे 41 प्रतिशत वोट और 77 सीटें मिली थीं। इस बार भी गहलोत को राज्य में ऑब्जर्वर के तौर पर लगाया तो गया, लेकिन वे राजस्थान में अपनी ही सरकार संभालने से फुर्सत नहीं पा रहे थे। जगदीश ठाकोर, शक्ति सिंह गोहिल और अर्जुन मोढवाडिया जैसे नेताओं के बीच कोई तालमेल नहीं दिखाई दिया।

कांग्रेस के प्रचार में स्पष्ट मैसेज की कमी

जहां राज्य में कांग्रेस बेरोजगारी और महंगाई जैसे सही मुद्दों को पूरे जोर से उठाने में नाकाम रही, वहीं इसके कई बड़े नेताओं ने ऐसे बयान दिए जिसे भाजपा ने अपने पक्ष में मोड़ दिया। कभी ‘औकात’ पर तो कभी ‘रावण’ शब्द को भाजपा ने गुजरात का अपमान बताया।

भाजपा ने असंतोष दूर करने में पूरा जोर लगायाभाजपा ने इस बात को पहले ही भांग लिया था कि 27 साल की सत्ता के बाद लोगों में कई तरह के असंतोष भी आ जाते हैं। चुनाव के दो साल पहले से ही जनता के असंतोष को दूर करने में पूरा जोर लगा दिया। यहां तक कि पिछले साल अपने तब के सीएम सहित पूरी कैबिनेट को इसलिए हटा दिया कि लोगों का असंतोष कम हो। विजय रुपाणी और उनकी पूरी कैबिनेट को हटा कर भूपेंद्र पटेल को नया सीएम बना दिया गया।