मध्य प्रदेश सरकार ने चंबल क्षेत्र में डकैतों की वजह से मशहूर रहे बीहड़ों की तस्वीर बदलने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। प्रदेश सरकार इन बीहड़ों में खेती और वृक्षारोपण कराने जा रही है। सरकार इसके लिए केंद्र से मदद चाह रही है जिसका पैसा विश्व बैंक के जरिए आना है। इस काम को पूरा होने में लगभग पांच साल लग सकते हैं लेकिन स्थानीय लोगों में इसे लेकर कोई खास उम्मीद नहीं है।
मध्य प्रदेश के प्रमुख सचिव कृषि राजेश राजौरा ने बताया, “भिंड, मुरैना और श्योपुर के क्षेत्र में हम लोग दो लाख हेक्टेयर जमीन पर काम करेंगे। इसमें हर तरह के काम किए जाएंगे ताकि उस क्षेत्र का विकास हो सके। हमारी कोशिश होगी इस जमीन को खेती लायक बनाना और इस काम को इस तरह से किया जाएगा कि यह फिर से बीहड़ों में तब्दील न होये पूरी योजना लगभग 1100 करोड़ रुपए की है जिसमें से 900 करोड़ रुपए विश्व बैंक के जरिये प्रदेश सरकार के पास आने हैं जबकि बाकी दो सौ करोड़ रुपए राज्य सरकार देगी।
इस योजना के तहत बीहड़ की जमीन को पहले बराबर किया जाएगा और फिर उसमें खेती और वृक्षारोपण का काम किया जाएगा।हालांकि सरकार के इस निर्णय को पर्यावरणविद सही नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि ये काम आसान नहीं है और इसे समतल कर खेती करने के अपने नुकसान हैं जो क्षेत्र के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं।
पर्यावरणविद अनिल गर्ग कहते हैं, “इससे पहले भी सरकार इस क्षेत्र में कई क़दम उठा चुकी है लेकिन कुछ भी बदलाव नहीं हुआ। अब अगर ज़मीन को बराबर करके खेती की जाती है या फ़ैक्ट्री लगाई जाती है तो इससे पर्यावरण का कोई संरक्षण नहीं होना है। बल्कि नुकसान ही होना है।कुछ इसी तरह की राय एक और पर्यावरणविद अजय दुबे की भी है। वह कहते हैं, “ये क्षेत्र घड़ियाल, मगरमच्छ, डॉल्फिन और प्रवासी पंछियों के लिए भी जाना जाता है। इनका नुकसान पहले ही अवैध उत्खनन की वजह से होता रहा है। लेकिन जब बीहड़ों को समतल किया जाएगा तो इससे नुकसान इन्हें भी उठाना पड़ेगा।”
वहीं स्थानीय लोगों को भी इस योजना से कोई ख़ास उम्मीद नजर नहीं आती है।पेशे से किसान भगवती ने बताया, “सरकार ने इन बीहड़ों के लिए इस तरह की कई योजनाएं पहले भी बनाई हैं। लेकिन वो सब कागजों में ही रह गई और हमें कुछ भी फ़ायदा नहीं हुआ। हमें लगता है कि कुछ होना नहीं है। ये जैसे बरसों से है वैसे ही रहेंगे।
“हालांकि अधिकारी खुद ही मानते हैं कि बीहड़ों को समतल करना कोई आसान काम नहीं है। 1970 में इन बीहड़ों में कृषिकरण योजना प्रारंभ की गई थी और हवाई जहाज़ के ज़रिए बीजों का छिड़काव किया गया था। इसके अलावा भी कई और कोशिशें विफल साबित हुई हैं