Monday, September 22

सुंदरी का प्रण, शादी उसी से करूंगी जो दिल जीतेगा, नहीं तो कुंवारी रहूंगी

Beauti ful

गुजरात के हमीर जोडेजा और अमरकोट के राणा वीसलदेव सोढ़ा के पुत्र महिंद्रा के बीच खूब जमती थी। एक बार हमीर और महिन्द्रा शिकार के दौरान एक हिरण का पीछा करते हुए दूर लोद्रवा राज्य की काक नदी के किनारे पहुंचे। हिरण अपनी जान बचाने के लिए काक नदी में कूद गया। शिकार छोड़ दोनों ने इधर-उधर नजर दौड़ाई तो नदी के उस पार उन्हें एक सुन्दर बगीचा व उसमें बनी एक दुमंजिली झरोखेदार मेड़ी दिखाई दी।

सुनसान इलाके में सुहावना स्थान देख दोनों की तबीयत खुश हो गई। घोड़े को नदी में उतार दोनों ने नदी पार कर बगीचे में प्रवेश किया। उनकी आवाजें सुन मेड़ी में बैठी मूमल ने झरोखे से नीचे झांक कर देखा तो उसे गर्दन पर लटके लम्बे काले बाल, भौंहों तक तनी हुई मूंछे, चौडी छाती और मांसल भुजाओं वाले दो खुबसूरत नौजवान अप

ना पसीना सुखाते दिखाई दिए। मूमल ने तुरंत अपनी दासी को बुलाकर कहा, नीचे जा नौकरों से कहो कि इन सरदारों के घोड़े पकड़े व इनके रहने खाने का इंतजाम करें, दोनों किसी अच्छे राजपूत घर के लगते हैं। शायद रास्ता भूल गए हैं, इनकी अच्छी खातिर कराओं। मूमल के आदेश से नौकरों ने दोनों के आराम के लिए व्यवस्था की, उन्हें भोजन कराया। तभी मूमल की एक सहेली ने आकर दोनों का परिचय पूछा। हमीर ने अपना व महिंद्रा का परिचय दिया और पूछा कि तुम किसकी सहेली हो? ये सुन्दर बाग व झरोखेदार मेड़ी किसकी की है और हम किसके मेहमान हैं? मूमल की सहेली कहने लगी क्या आपने मूमल का नाम नहीं सुना? उसकी चर्चा नहीं सुनी? मूमल जो जगप्यारी मूमल के नाम से पुरे माढ़ जैसलमेर देश में प्रख्यात हैं। जिसके रूप से यह सारा प्रदेश महक रहा है। जिसके गुणों का बखान यह काक नदी कल-कल कर गा रही है। यह झरोखेदार मेड़ी और सुन्दर बाग उसी मूमल का है जो अपनी सहेरियों के साथ यहां अकेली ही रहती है। यह कह कर सहेली चली गयी।

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तभी भोजन का जूंठा थाल उठाने आया नाई बताने लगा, सरदारों आप मूमले के बारे में क्या पूछते हो। उसके रूप और गुणों का तो कोई पार ही नहीं। वह शीशे में अपना रूप देखती हैं तो शीशा टूट जाता है। श्रृंगार कर बाग में आती है तो चांद शरमाकर बादलों में छिप जाता है। उसकी मेड़ी दीवारों पर कपूर और कस्तूरी का लेप किया हुआ है, रोज ओखलियों में कस्तूरी कूटी जाती है, मन-मन दूध से वह रोज स्नान करती है, शरीर पर चन्दन का लेप कराती है। मूमल तो इस दुनिया से अलग है भगवान ने वैसी दूसरी नहीं बनाई। कहते-कहते नाई बताने लगा अखन कुंवारी मूमल पुरूषों से दूर अपने ही राग रंग में डूबी रहती है। एक से एक खुबसूरत बहादुर गुणी, धनवान, जवान, राजा, राजकुमार मूमल से शादी करने आये पर मूमल ने तो उनकी और देखा तक नहीं उसे कोई भी पसंद नहीं आया। मूमल ने प्रण ले रखा है कि वह विवाह उसी से करेगी जो उसका दिल जीत लेगा, नहीं तो पूरी उम्र कुंवारी ही रहेगी। कुछ ही देर में मूमल की सहेली ने आकर कहा कि आप दोनों में से एक को मूमल ने बुलाया है। हमीर ने अपने साले महेन्द्रा को जाने के लिए कहा पर महिन्द्रा ने हमीर से कहा, पहले आप। हमीर को मेडी के पास छोड़ सहेली ने कहा आप भीतर पधारें। मूमल आपका इंतजार कर रही हैं। हमीर जैसे ही आगे चौक में पहुंचा तो देखा आगे उसका रास्ता रोके एक शेर बैठा है और दूसरी ओर उसे एक अजगर रास्ते पर बैठा दिखाई दिया। हमीर ने सोचा मूमल कोई डायन है और नखलिस्तान रचकर पुरूषों को अपने जाल में फंसा मार देती होगी। वह तुरंत उल्टे पांच वापस हो चौक से निकल आया। हमीर व महिंद्रा आपस में बात करते तब तक मूमल की सहेली आ गयी और महिन्द्रा से कहने लगी आप आइए मूमल आपका इंतजार कर रही है। महिंद्रा ने अपना अंगरखा पहन हाथ में भाला ले सहेली के पीछे चलना शुरू किया। सहेली ने उसे भी हमीर की तरह चौक में छोड़ दिया, महिंद्रा को भी चौक में रास्ता रोके शेर बैठ नजर आया। उसने तुरंत अपना भाला लिया और शेर पर पूरे वेग से प्रहार कर दिया। शेर जमीन पर लुढक गया और उसकी चमड़ी में भरा भूसा बाहर निकल आया। महिंद्रा ने भूसे से भरे उस अजगर के भी अपनी तलवार के प्रहार से टूकड़े-टुकडे कर दिए। अगले चौक में महिंद्रा को पानी भरा नजर आया, महिंद्रा ने पानी की गहराई नापने हेतु जैसे पानी में भाला डाला तो ठक की आवाज आई। महिंद्रा समझ गया कि जिसे वह पानी समझ रहा है वह कांच का फर्श है। कांच का फर्श पार कर सीढिय़ां चढ़कर महिंद्रा मूमल की मेड़ी में प्रविष्ठ हुआ। आगे मूमल खड़ी थी जिसे देखते ही महिंद्रा ठिठक गया। मूमल ऐसे लग रही थी जैसे काले बादल में बिजली चमकी हो, पैरों तल लम्बे काले बाल मानों काली नागिन सिर से जमीन पर लोट रही हो। चम्पे की डाल जैसी कलाइयों, बड़ी बड़ी सुन्द्र आंखें, ऐसे लग रही थी जैसे मद भरे प्याले हो, तपे हुए कुंदन जैसे बदन का रंग वक्ष जैसे किसी सांचे में ढाले गए हो, पेट जैसे पीपल का पत्ता, अंग-अंग जैसे उफन रहा हो। मूमल का यह रूप देखकर महिंद्रा के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा, न किसी मंदिर में ऐसी मूर्ति होगी और न किसी राजा के रणवास में ऐसा रूप होगा। महिंद्रा तो मूमल को ठगा सा देखता ही रहा। उसकी नजरें मूमल के चेहरे को एकटक देखते जा रही थीं। दूसरी और मूमल मन में कर रही थी। क्या तेज है इस नौजवान के चेहरे पर और नयन तो नयन क्या खंजर है। दोनों की नजरें आपस में ऐसे गड़ी कि हटने का नाम ही नहीं ले रहीं थी। आखिर मूमल ने महिंद्रा का स्वागत किया दोनों ने खूब बातें की। बातों ही बातों में दोनों एक दूसरे को कब दिल बैठे पता ही न चला और न ही पता चला कि कब रात खत्म हो गयी और कब सुबह का सूरज निकल आया। उधर हमीर को महेन्द्रा के साथ कोई अनहोनी ना हो जाये सोच कर नींद ही नहीं आई। सुबह होते ही उसने नाई के साथ संदेश भेज महिंद्रा को बुलवाया और चलने को कहा। महिंद्रा का मूमल को छोड़कर वापस चलने का मन तो नहीं था पर मूमल से यह कह- मैं फिर आऊंगा मूमल बार बार आकर तुमसे मिलूंगा। दोनों वहां से चल दिए हमीर गुजरात अपने वतन रवाना हुआ और महिंद्रा अपने राज्य अमरकोट। मूमल से वापस आकर मिलने का वायदा कर महिन्द्रा अमरकोट के लिए रवाना तो हो गया पर पूरे रास्ते उसे मूमल के अलावा कुछ और दिखाई ही नहीं दे रहा था। महेन्द्रा अमरकोट पहुंचा। लेकिन उसका दिन तो किसी तरह कट जाता पर शाम होते ही उसे मूमल ही मूमल नजर आने लगती। वह जितना अपने मन को समझाने की कोशिश करता। उतना ही मूमल की यादें और बढ़ जाती। वह तो यही सोचता कि कैसे लोद्रवे पहुंच कर मूमल से मिला जाय। आखिर उसे सुझा कि अपने ऊंटों के टोले में ऐसा ऊंट खोजा जाए जो रातों रात लोद्रवे जाकर सुबह होते ही वापस अमरकोट आ सके। उसके अपने रायका रामू को बुलाकर पूछा तो रामू रायका ने बताया क उसके टोले में एक चीतल नाम का ऊंट है जो बहुत तेज दौड़ता है और वह उसे आसानी से रात को लोद्रावे ले जाकर वापस सुबह होने से पहले ला सकता है। फिर क्या था। रामू रायका रोज शाम को चीतल ऊंट को सजाकर महेन्द्रा के पास ले आता और महेन्द्रा चीतल पर सवार हो एड लगा लोद्रवा मूमल के पास जा पहुंचता। तीसरे प्रहार महेन्द्रा फिर चीतल पर चढ़ता और सुबह होने से पहले अमरकोट आ पहुंचता। लेकिन महेनद्रा विवाहित था उसकी सात पत्नियां थीं। 7 मूमल के पास से वापस आने पर वह सबसे छोटी पत्नी के पास आकर सो जाता। इस तरह कोई सात आठ महीनों तक उसकी यही दिनचर्या चलती रही, इन महीनों में वह बांकी पत्नियों से तो मिला तक नहीं। इसलिए वे सभी सबसे छोटी बहु से ईष्या करनी लगी और एक दिन जाकर इस बात पर उन्होंने अपनी सास से जाकर शिकायत की। सास ने छोटी बहु को समझााया कि बांकी पत्नियों को भी महिंद्रा ब्याह कर लाया है। उनका भी उस पर हक बनता है। इसलिए महिंद्रा तो उसके पास रोज सुबह होने से पहले आता है और आते ही सो जाता है। उसे भी उससे बात किये कोई सात आठ महीने हो गए। छोटी बहु की बातें सुन महिंद्रा की मां को शक हुआ और उसने यह बात अपनी पति राणा वीसलदे को बताई। चतुर वीसलदे ने छोटी बहु से पूछा कि जब महिंद्रा आता है तो उसमें क्या कुछ खास नजर आता है। छोटी बहु ने बताया कि जब रात के आखिरी प्रहर महिंद्रा आता है तो उसके बाल गीले होते हैं। जिनमें से पानी टपक रहा होता है। चतुर वीसलदे ने बहु को हिदायत दी कि आज उसके बालों के नीचे कटोरा रख उसके भीगे बालों से टपके पानी को इक्कठा कर मेरे पास लाना। बहु ने यही किया और कटोरे में एकत्र पानी वीसलदे के सामने हाजिर किया। वीसलदे ने पानी चख कर कहा, यह तो काक नदी का पानी है इसका मतलब महिंद्रा जरूर मूमल की मेडी में उसके पास जाता होगा।