
प्रदेश में डीएपी खाद की किल्लत विकराल हो गई है, क्योंकि सभी 3400 सहकारी संस्थाओं में इस समय खाद नहीं है। जिन 25 जिलों में अगले 20 दिन में रबी सीजन की फसलों गेहूं, चना, मसूर, सरसों की बुवाई होना है, वहां की सहकारी संस्थाएं भी खाली पड़ी हैं। अक्टूबर के शेष 5 दिन और नवंबर के 15 दिन किसान इन्हीं फसलों की बुवाई करेंगे, लेकिन खाद की किल्लत ने उसकी परेशानी बढ़ा दी है।
इस महीने के बकाया 5 दिनों में केंद्र से 12 रैक यूरिया, 5 रैक डीएपी और 10 रैक एनपीके खाद के मिलना है, जबकि इस दरम्यान खाद के 50 रैक की जरूरत है। रबी की सभी फसलों की बुवाई में ज्यादा डीएपी खाद लगती है, लेकिन केंद्र से सिर्फ 5 रैक ही (13 हजार मीट्रिक टन) मिल रही है, जबकि जरूरत एक लाख मीट्रिक टन की है।
डीएपी की कमी होने पर वैकल्पिक एनपीके खाद का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन इस खाद की भी सप्लाई 26 हजार मीट्रिक टन होनेे की संभावना है। बता दें कि यूरिया की जरूरत फसल की बढ़त के लिए बुवाई होने के 21 दिन बाद होती है।
इन जिलों में तुरंत चाहिए खाद
भोपाल, रायसेन, सीहोर, शिवपुरी, श्योपुर, अशोकनगर, गुना, राजगढ़,जबलपुर, मंडला, डिंडोरी, दमोह, नरसिंहपुर, ग्वालियर, दतिया, भिंड और मुरैना, होशंगाबाद, सागर, दमोह, विदिशा, रीवा, सीधी, सतना, देवास, शाजापुर, इंदौर, उज्जैन, मंदसौर, नीमच।
डीएपी की 1200 रु. की बोरी 1450 और एनपीके की बोरी 1700 रु. में बिक रही है। मजबूरन किसानों को महंगे दामों में खाद खरीदना पड़ रही है। इसकी बड़ी वजह रबी सीजन की बुवाई का समय 15 नवंबर तक ही रहता है।
रेलवे के रैक प्वाइंट, जहां से 29 जिलों में होना है खाद की सप्लाई
प्रदेश में खाद सप्लाई के रेलवे के 10 रैक प्वाइंट सतना, मंडीदीप, शिवपुरी, कच्छपुरा (जबलपुर), गाडरवारा, रायरू (ग्वालियर), पिपरिया (होशंगाबाद), सागर, रीवा और देवास में है। इन रैक प्वाइंट में 5 दिनों में 37 रैक खाद के पहुंचने की संभावना है, जिसमें 31200 मीट्रिक टन यूरिया, 13000 मीट्रिक टन डीएपी और 26000 मीट्रिक टन एनपीके खाद के होंगे।
एक्सपर्ट व्यू- सरकार की कोई प्लानिंग ही नहीं
- खाद की कमी की वजह क्या है?
– सरकार की कोई प्लानिंग नहीं है जब पहले से पता था कि डीएपी खाद की कमी होने वाली है तो पहले से भंडारण किया जा सकता था।
- वितरण व्यवस्था में खामी है?
– अनुमान ही सही नहीं तो वितरण व्यवस्था में तो खामी होगी ही।
- प्लानिंग में क्या कमी है।
– बुवाई शुरु होने के पहले संभागीय और जिला स्तर पर अफसरों की नियमित बैठक होती थी। अफसरों को फील्ड में भेजा जाता था, जहां से सही डिमांड सामने आती थी। उस हिसाब से मांग की जाती थी।
– जीएस कौशल, रिटायर्ड एग्रीकल्चर डायरेक्टर