Sunday, October 12

अखाड़ा परिषद के महामंत्री बने राजेंद्र दास का दावा:हमारे आश्रम में PM मोदी साढ़े सात साल साधु बनकर रहे, संपर्क में गृहमंत्री भी

13 अखाड़ों के समूह को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद कहा जाता है। महंत नरेंद्र गिरी इसके अध्यक्ष थे, जिनकी मौत हो चुकी है। अब परिषद के नए अध्यक्ष को लेकर जमकर खींचतान चल रही है। एक गुट ने 20 अक्टूबर को बैठक कर ली और अध्यक्ष, महामंत्री समेत पूरी नई कार्यकारिणी गठित कर दी। दूसरे गुट ने 25 अक्टूबर, यानी आज प्रयागराज में कार्यकारिणी के चुनाव के लिए बैठक बुलाई है।

इस बैठक के पहले दो महामंत्रियों ने भास्कर से खास बातचीत की। पहले व्यक्ति हैं राजेंद्र दास। इन्हें अखाड़ा परिषद के एक गुट ने 20 तारीख को हुई बैठक में महामंत्री नियुक्त किया है। दूसरे व्यक्ति हैं हरिगिरी महाराज। यह नरेंद्र गिरी वाली अखाड़ा परिषद में महामंत्री थे और इनके मुताबिक अब भी हैं, क्योंकि इन्होंने दूसरे गुट की कार्यकारिणी को मान्यता नहीं दी है।

अखाड़ा परिषद में अध्यक्ष से ज्यादा महत्वपूर्ण पद महामंत्री का होता है, क्योंकि सभी वित्तीय लेनदेन महामंत्री की निगरानी में ही होते हैं। अध्यक्ष का काम तो सिर्फ निर्देश देने का होता है।

पहले राजेंद्र दास महाराज की बात…
‘आज की बैठक में हम नहीं जाएंगे, क्योंकि अब उसका कोई औचित्य नहीं रह गया है। सात अखाड़ों का हमारा जो संगठन बना है, वो सही है। इसमें चार संप्रदाय वैष्णव, निर्मल, उदासीन और संन्यासी शामिल हैं। बहुमत के आधार पर फैसला हुआ है। आज नहीं तो कल सबको इसमें आना ही होगा। हमारे पूर्व की कार्यकारिणी में जो सदस्य थे, वो सालों से थे और जिंदगी भर बने रहना चाहते हैं, जो पूरी तरह से गलत है।

मैं अहमदाबाद के जगन्नाथ मंदिर का पुजारी हूं। वहां के महंत दिलीप दास जी हैं। मेरा उदय ही गुजरात से हुआ है। सालों से मैं अहमदाबाद में रह रहा हूं। हमारे आश्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साढ़े सात वर्षों तक साधु के भेष में रहे। गृहमंत्री अमित शाह जी की देखरेख में हम रहते हैं। सबसे साथ सालों से जुड़े हैं।

हमारी कार्यकारिणी में सब नौजवान हैं। अधिकतर 25 से 50 साल की उम्र के बीच हैं। मैं तो कहता हूं कि मैं BJP समर्थक हूं। न कोई किसी को बनाता है और न किसी का कुछ बिगाड़ता है। ये सब समय का खेल है। समय, परिस्थिति के हिसाब से ही अब भी फैसला लिया गया है, जो पूरी तरह से लोकतांत्रिक है।’

अब हरिगिरि महाराज की बात…
‘बैठक सोमवार को दोपहर 12 बजे से ही होगी। जो भी बैठक में आएंगे, उनके साथ विचार-विमर्श करके ही आगे का निर्णय लिया जाएगा। 20 अक्टूबर को जो बैठक की गई है, उसमें वैष्णव परिषद पहले से अलग हो गया था। निर्मोही अखाड़े के जो मुख्य महंत हैं, वो उस बैठक में शामिल नहीं हुए। जो अयोध्या में रामलला की पूजा करते हैं। सालों तक जिन्होंने कोर्ट में केस लड़ा। जो उसके महंत हैं और जो महंत बैठक में शामिल हुए, उन लोगों के विचार अलग-अलग हैं।

निर्मल अखाड़े की तरफ से भी प्रेस नोट जारी हो चुका है। वे 24 को होने वाली बैठक में आने की अपेक्षा रखते हैं। दिगंबर अखाड़े के लोग भी अपनी बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने भी सवाल खड़े किए हैं कि रातों रात चुनाव कैसे हो गए। आज होने वाली बैठक में कोई भी अपनी दावेदारी रख सकता है। बहुमत के आधार पर फैसला होगा।

और किसी भी बैठक का परिणाम एक दिन में नहीं निकलेगा। यह कई महीनों की प्रक्रिया है। उनकी कई बैठकें होंगी। हमारी कई बैठकें होंगी। कई लोग इधर-उधर जाएंगे। वो हमारे साथ शामिल हो सकते हैं। हम उनके साथ शामिल हो सकते हैं। समय के साथ सब होगा। समय का इंतजार करना ही सही है।‘

क्या है अखाड़ा परिषद के चुनाव की प्रक्रिया
अखाड़ा परिषद का गठन साल 1954 में किया गया था। इसका मकसद सनातन संस्कृति को आगे बढ़ाना और आपसी समन्वय बनाकर काम करना है। इसमें कुल 13 अखाड़े शामिल हैं। जो शैव, वैष्णव और उदासीन में बंटे हुए हैं।

हर एक अखाड़े के दो मेम्बर बैठक में शामिल होते हैं। इस तरह से 13 अखाड़ों के कुल 26 सदस्य होते हैं। इन्हीं की वोटिंग से अखाड़ा परिषद की कार्यकारिणी गठित की जाती है। हालांकि, विवादों के चलते सदस्यों की संख्या आगे पीछे होती रहती है।