भोपाल। 50 साल के अपने राजनीति करियर में ‘निष्कलंक’ होने का दावा करते आए मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव पर भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया है। मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव पर व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले में नाम आने के बाद STF ने FIR दर्ज कर ली है। पिछले कई दिनों से जारी अटकलों को विराम देते हुए मंगलवार को राज्यपाल के खिलाफ FIR दर्ज कर ली गई। देश के इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब, पद पर रहते हुए किसी राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई होहालांकि राज्यपाल पर एफआईआर करने की तैयारी पहले ही शुरू हो गई थी। मप्र हाईकोर्ट और एसआईटी से हरी झंडी मिलने के बाद एसटीएफ ने राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है। एफआईआर सुबह 10 बजे एसटीएफ थाने में दर्ज की गई थी और इसकी सूचना एसआईटी को भी दे दी गई थीराज्यपाल के खिलाफ आईपीएस की धारा के तहत नहीं, बल्कि भ्रष्टाचारा निवारण कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है। उन पर फॉरेस्ट विभाग में नौकरी लगवाने की सिफारिश करने का मामला दर्ज हुआ है। सतीश और महेश नाम के दो लड़कों की नौकरी उन्होंने पुलिस आरक्षक के तौर पर लगवाई थी, जबकि दोनों ने फॉरेस्ट विभाग में भर्ती के लिए परीक्षा दी थी।
व्यापमं मामले की जांच कर रही एसटीएफ को एमपी हाईकोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि 15 मार्च तक हर हाल में अंतिम चालान पेश कर दिया जाए। सोमवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि, 4 मार्च को होने वाली सुनवाई में एसटीएफ बताए कि 23 फरवरी से लेकर 3 मार्च तक उसने क्या किया है? माना जा रहा था कि कोर्ट के इस निर्देश के बाद 11 “महत्वपूर्ण” लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराने की कार्रवाई शुरू हो सकती है। इनमें पहला नाम राज्यपाल रामनरेश यादव के तौर पर सामने आया।
व्यापमं घोटाले में एसटीएफ ने कोर्ट को बंद लिफ़ाफ़े में 17 लोगों के नाम सौंपे हैं। लेकिन, पहली कड़ी में 11 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक़ इसकी तैयारी कर ली गई है और फंड कलेक्शन किस तरह से किया जाता था, इसकी डिटेलिंग करने के बाद इनके खिलाफ जुर्म रजिस्टर किया जाएगा। गौरतलब है कि राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे शैलेश का नाम भी इस घोटाले में शामिल है।
व्यापमं मध्य प्रदेश में इंजीनियरिंग-मेडिकल के कोर्स और अलग-अलग सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का आयोजन करने वाली संस्था है। पिछले 10 सालों में व्यापमं ने पीएमटी से लेकर पुलिस आरक्षक, उपनिरीक्षक, परिवहन निरीक्षक, संविदा शिक्षक भर्ती सहित कई परीक्षाएं आयोजित की। इन परीक्षाओं में गड़बड़ी पर 17 एफआईआर हुई हैं। 10 सालों में आयोजित 100 से अधिक परीक्षाओं के जरिए बड़ी तादाद में अयोग्य लोगों को नौकरियां या डिग्रियां दिलवाई गईं।
साल 2004 से इसकी शुरुआत हुई। इस गोरखधंधे में कई राजनेता, नौकरशाह, दलाल, छात्र और शिक्षण संस्थान के बड़े अधिकारियों का बड़ा नेटवर्क शामिल था। यहां तक कि फर्जी नियुक्तियां करवाने के लिए कई सरकारी नियमों को ढीला किया गया। कई नियम बदल दिए गए तो कइयों को हटा ही दिया गया।
इस घोटाले का पर्दाफाश साल 2013 में तब हुआ था, जब इंदौर क्राइम ब्रांच, पीएमटी में फर्जी तरीके से छात्रों को पास करवाने वाले एक रैकेट तक पहुंची। जुलाई, 2013 में इंदौर में कुछ छात्र फर्जी नाम पर पीएमटी की प्रवेश परीक्षा देते गिरफ्तार किए गए थे। पूछताछ में पता चला कि यह नेटवर्क डॉ जगदीश सागर चला रहा है। जगदीश के यहां पुलिस ने दबिश दी, तो उसके घर पर छापेमारी में भारी मात्रा में नकदी, सोना और अवैध संपत्ति का खुलासा हुआ।
पीएमटी परीक्षा 2012 में अपराध क्रमांक 12/13 धारा 420,467,468,471, 120 बी आईपीसी , 65,66 आईटी एक्ट की धारा, धारा 3 घ 1, 2/4 मप्र मान्यता प्राप्त परीक्षा अधिनियम के तहत दर्ज किया गया। इसके बाद पीएमटी परीक्षा 2013 में एफआईआर दर्ज की गई। दोनों एफआईआर में 104 स्टूडेंट को एसटीएफ ने पकड़ा था।
पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, डॉ विनोद भंडारी, ओपी शुक्ला,पंकज त्रिवेदी, सुधीर शर्मा, सीके मिश्रा, नितिन महेंद्रा, डॉ जगदीश सागर, अनिमेश आकाश सिंह, जितेंद्र मालवीय, आरके शिवहरे, रविकांत द्विवेदी, वंदना द्विवेदी, जीएस खानूजा, मोहित चौधरी, नरेंद्र देव आजाद