
कोरोना के बाद ब्लैक फंगस के मामले बढ़ते जा रहे हैं। जबलपुर मेडिकल कॉलेज में ही मरीजों का आंकड़ा 100 पार कर गया। वहीं शहर के निजी अस्पतालों में भी 50 से अधिक मरीज इलाजरत हैं। राहत की बात ये है कि 39 मरीजों की सर्जरी हो चुकी है और वे तेजी से रिकवर कर रहे हैं। 74 वर्षीय वृद्ध में ब्लैक और वाइट दोनों तरह के मिक्स फंगस मिले हैं। फंगस अधिक फैलने की वजह से तालू और जबड़ा काट कर अलग करना पड़ा है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस जबलपुर मेडिकल कॉलेज में बने 20 नंबर वार्ड में पहुंची। यहां सभी पोस्ट कोविड और फंगस से पीड़ित मरीज भर्ती हैं। राहत की बात ये है कि अधिकतर मरीज शुरूआती चरण में ही आ गए। इस कारण वे रिकवर भी तेजी से कर रहे हैं। कुछ ही मरीज क्रिटिकल हैं और उनका फंगस दिमाग तक फैल चुका है।
एक ही मरीज में दोनों फंगस का पहला केस
जबलपुर निवासी 74 साल के वृद्ध में ब्लैक के साथ वाइट कैंडिडा फंगस मिलने का पहला केस आया है। बुजुर्ग कोरोना को हरा चुका है। नेजल एंडोस्कोपी के बाद नाक, कान व गला रोग विभाग के विशेषज्ञों ने उसके तालू व जबड़े का ऑपरेशन कर सड़ चुके हिस्से को काट कर अलग कर दिया। अब उनकी हालत खतरे से बाहर है।
106 फंगल से संक्रमित मेडिकल में भर्ती
ईएनटी विभाग की एचओडी डॉक्टर कविता सचदेवा के मुताबिक इस समय फंगल के कुल 106 मरीज भर्ती हैं। इसमें 39 का ऑपरेशन मेडिकल में किया जा चुका है। 12 बाहर से ऑपरेशन कराने के बाद भर्ती हुए हैं। 4 की मौत हो चुकी है। 5 के दिमाग तक फंगल पहुंच चुका है। वहीं कुछ को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है।
आंख के पीछे भर जाती है मवाद
ईएनटी विभाग में पदस्थ डॉक्टर सौम्या सैनी के मुताबिक आंख, जबड़ा व तालू से जुड़े ब्लैक फंगस के मरीज अधिक संख्या में आ रहे हैं। फंगस के कारण मेडिकल में अब तक एक भी मरीज की आंख नहीं निकाली गई। नेजल एंडोस्कोपी के माध्यम से आंख के पिछले हिस्से में भरी मवाद को बाहर निकालकर आंखों की रोशनी बचाई गई। एचओडी डॉ. कविता सचदेवा के मुताबिक ब्लैक फंगस से संक्रमित मरीज समय से अस्पताल पहुंच जाएं तो ऑपरेशन की नौबत भी नहीं आती।
फंगस से पीड़ित मरीजों ने सुनाई आपबीती
- शास्त्रीनगर जबलपुर निवासी पीड़ित अखिलेश खरे ने बताया कि कोरोना की 10 दिन दवा खाई। 12 मई से सूजन नाक व जबड़े में सूजन के साथ तेज सिर दर्द होने लगा। डाॅक्टर को दिखाया, तो पता चला कि ब्लैक फंगस है। दो दिन कोविड वार्ड में रहा। फिर फंगस के लिए बने इस 20 नंबर वार्ड में आ गया। यहां ऑपरेशन हुआ। अब दर्द से राहत है। आंख भी खुलने लगी।
- गढ़ा जबलपुर निवासी पीड़ित आनंद श्रीवास्तव भी इसी वार्ड में भर्ती हैं। उनकी पत्नी ने बताया कि 4 अप्रैल से बुखार आ रहा था। 8 को टायफाइड की जांच कराई। फिर कोविड की। 17 दिन तक मेडिकल के कोविड वार्ड आईसीयू में रहे। 25 को डिस्चार्ज कर ले गए। इसके बाद सिर में तेज दर्द होने लगा। न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाया। फिर इधर लेकर आए। फंगल इंफेक्शन बताया गया। 17 मई को ऑपरेशन हुआ। अब बहुत आराम है।
- पिपरिया नरसिंहपुर निवासी संजय शर्मा के मुताबिक वह भी कोरोना से संक्रमित हुए थे। इसके बाद नाक के पास सूजन हो गया। सिर में तेज दर्द होने पर डॉक्टर को दिखाया तो ब्लैक फंगस की आशंका व्यक्त करते हुए मेडिकल रेफर कर दिया। यहां ऑपरेशन हो गया। अब तो बोल भी पा रहे हैं।
शुगर पीड़ित ही ब्लैक फंगस से पीड़ित मिले
ईएनटी विभाग की डॉक्टर सौम्या सैनी के मुताबिक कोविड इलाज के दौरान इम्युनिटी कमजोर हो जाती है। अभी तक सारे पेशेंट शुगर पीड़ित ही मिले हैं। इसमें से कुछ काे पहले से शुगर था और कुछ को पोस्ट कोविड हुआ है। इसमें से अधिकतर को स्टेरॉयड इंजेक्शन भी दिए गए हैं। नाक व आंख के पास सूजन व दर्द से इसकी शुरूआत हो रही है। ऐसे मरीजों की माइक्रोबॉयोलॉजी में जांच कराते हैं। इसके बाद एंडोस्कोपी, एमआरआई व सिटी स्कैन की जांच कराने के बाद निर्णय लेते हैं कि ऑपरेशन करना है या दवा से ठीक हो जाएगा।
लायपोसोमल एम्फोसिटीरिन-बी इंजेक्शन की कमी
अस्पतालों में म्यूकर माइकोसिस के मरीजों की संख्या बढ़ने के साथ ही लायपोसोमल एम्फोसिटीरिन-बी के लिए लोग परेशान हो रहे हैं। मेडिकल कॉलेज में इसकी दवा प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई है। दरअसल एम्फोसिटीरिन-बी बेहद कम बिकने वाली दवा होने के कारण इसे दवा कारोबारी नहीं रखते थे। निर्माता भी सीमित मात्रा में ही बना रहे थे। अचानक मांग बढ़ने से आपूर्ति नहीं हो पा रही है।
मरीज के वजन के मुताबिक दी जाती है इंजेक्शन की डोज
फंगल इंफेक्शन में मरीज को उसकी शरीर की क्षमता के अनुसार 50 एमएल से 100 एमएल के बीच में इंजेक्शन लगाने पड़ते हैं। इंजेक्शन के बाद सर्जरी और फिर कुछ खाने वाली दवा की जरुरत होती है। इंजेक्शन पहले और सर्जरी के बाद लगती है। इंजेक्शन के अलावा अभी कोई विकल्प नहीं है। एम्फोसिटीरिन-बी के विकल्प के रुप में उपलब्ध इंजेक्शन से किडनी फेल होने का खतरा है। इस कारण इसे नहीं लगाया जा रहा है।
फंगस से जुड़े सवालों का जवाब दे रही हैं जबलपुर मेडिकल कॉलेज में ईएनटी विभागाध्यक्ष डॉक्टर कविता सचदेवा
Q.मध्यप्रदेश खासकर अपने शहर में फंगल कौन सा मिल रहा है?
जवाब:-जबलपुर सहित आसपास के जिलों में म्यूकर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) मिला है। एक केव वाइट फंगस के मिले हैं, यह दवाओं से ठीक हो जाएगा। ब्लैक फंगस में खून की धमनियों में यह जम जाता है। यह गैंगरीन जैसी बन जाती है। हडि्डयां तक सड़ जाती है।
Q.एक साल बाद अचानक यह फंगस कैसे फैला, पहली लहर में तो नहीं था?
जवाब:-अधिकतर यह ऐसे कोविड संक्रमितों में मिला है, जो शुगर, किडनी व कैंसर बीमारी से पीड़ित थे या फिर कोविड इलाज के दौरान उन्हें स्टेराॅइड इंजेक्शन लगा हो। दूसरी लहर में इस इंजेक्शन का प्रयोग अधिक हुआ। कोविड के बाद शरीर काफी कमजोर हो जाता है। इस बार डबल म्यूटेंट वाला कोविड था। हालांकि कारणों पर अभी रिसर्च चल रहा है।
Q. यदि कोविड पेशेंट्स हैं तो ही यह हो रहा है या सामान्य पेशेंट्स भी चपेट में आए हैं?
जवाब:-नहीं, यह हर किसी को तो नहीं हो रहा है। अभी जो देखेन में आया है, यह उन्हीं लोगों को हो रहा है, जो कोविड पॉजिटिव निकले थ्ज्ञे। अस्पताल में लंबे समय तक ऑकसीजन पर थे। उस समय उन्हें इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन दी गई थी। ऐसे कोविड पेशेंट, जो पहले से शुगर, बीपी, कैंसर आदि गंभीर बीमारी से पीड़ित थे। 99 प्रतिशत इसी तरह के केस आए हैं। ऐसे पेशेंट की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
Q. यह फंगस मरीज को किस तरह से प्रभावित करता है? इसके लक्षण क्या हैं?
जवाब:-जब नाक की झिल्ली के भीतर जाता है,तो वहां पर सूजन आ जाती है। ऐसे में एक तरफ की नाक बंद भी हो जाती है। इससे आवाज में बदलाव दिखेगा। एक तरफ सिर भारी महसूस होगा। नाक से आंखों के पास पहुंच जाए, तो आंखों में सूजन आ जाती है। तेज सिर दर्द होता है। आंखों से धुंधला दिखाई देने लगता है। यदि यह दिमाग तक पहुंच गया तो फिर मरीज को बचाना मुश्किल है।
Q. कोविड से ठीक होने क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
जवाब:-कोविड के बाद आंख, चेहरे को लगातार साफ रखें, ब्लड में शुगर की मात्रा न बढ़ने दें, हायपर ग्लाइसेमिया से बचें। कोविड से ठीक हुए पेशेंट ब्लड ग्लूकोज पर नजर रखें। जांच कराते रहें। स्टेराॅयड के इस्तेमाल में समय और डोज नियंत्रण का ख्याल रखें। गंदगी वाली जगह पर नहीं जाना है। मास्क लगाएं। एंटी बायोटिक और एंटी फंगल दवाओं का डॉक्टर की परामर्श से इस्तेमाल करें।
Q. सफेद फंगस क्या है? और इससे यह किस तरह अलग है?
जवाब:-सफेद वाले की तुलना में ब्लैक फंगस अधिक अग्रेसिव होता है। यह ब्लड के जरिए फैलता है। और एक से दूसरे अंग में तेजी से फैलता है। ब्रेन में पहुंचने के बाद मरीज की जान बचाना मुश्किल है। जबकि सफेद फंगस कम घातक होता है। यह ब्रेन में नहीं पहुंचता है। और जहां से शुरू होता है उसी के आसपास के अंगों को सड़ते हुए आगे बढ़ता है। लेकिन छाती में वाइट फंगस होने पर यह अधिक घातक हो जाता है।
Q. कोविड लोगों में हाथ मिलाने, छींकने से फैल रहा है फंगस भी फैलता है?
जवाब:-ब्लैक फंगस कोविड की तरह वायरल डिसीज नहीं है। कोविड से ठीक हो रहे मरीजों को अधिक सफाई व सर्तकता की जरूरत है। फंगस अंधेरे कमरे, गीले वाले स्थान सहित सब जगह रहता है। ऐसे में साफ-सफाई रखे तो इससे बचा जा सकता है। पुराने समय में कुनकुने पानी से नाक की धुलाई करते थे, अब भी यह अधिक प्रभावी है।
Q. हमारे यहां फंगस के इलाज के लिए क्या-क्या सुविधा है, जैसे कोविड सेंटर बने हैं, क्या इसके लिए भी अलग से कुछ सुविधा है?
जवाब:-मेडिकल कॉलेज में तीन वार्ड बनाए जा चुके हैं। आज की तारीख में 106 मरीज हैं। 39 मेडिकल में और 12 बाहर से सर्जरी करा चुके हैं। अभी दवाएं उपलब्ध हैं। कई मरीज सिर्फ दवा खा रहे हैं। इसमें हर मरीज को रोज की दवा दी जा रही है। एंडोस्कोपी और एमआरआई के माध्यम से तय करते हैं कि ऑपरेशन करना है या नहीं।
Q. ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीज को ठीक होने में कितना समय लगता है?
जवाब:-यह कैंसर से भी घातक है और इसमें डेथ रेट अधिक है। खासकर फंगस दिमाग में पहुंच गया तो मरीज का बचना मुश्किल है। इलाज 15 दिन से डेढ़ महीने तक चलता है। इसके बाद ही फिर जांच करनी पड़ती है। तब पता चलेगा कि मरीज पूरी से ठीक हुआ या अभी उसे और इलाज की जरूरत है।
ब्लैक फंगस के लक्षण
आंख-नाक के आसपास दर्द व लालपन चेहरे के एक तरफ दर्द या सूजन नाक, मुख व आंख से काले रंग का पानी आना नाक के ऊपर काली पपड़ी जमना तालू में पपड़ी जमना, खून की उल्टियां आंखों में सूजन, दर्द या लाल होना नाक के आसपास गालों की हड्डियों में दर्द नाक बंद होना, सांस लेने में दिक्कत दांत काले होना। दांत व जबड़े कमजोर होना
इनकी भी ना करें अनदेखी
खांसी व साइनस धुंधला दिखाई देना सीने में दर्द मुंह से बदबू आना थ्रोम्बोसिस लगातार सिरदर्द, बुखार, कम दिखना या डबल दिखना
सावधानी रखें…
धूल और प्रदूषण वाली जगह में जानें से बचें। हाथ अच्छे से धोकर ही कुछ खाएं। कोरोना से ठीक होने के बाद भी बाहर निकलने पर मास्क लगाएं। नाक साफ करते रहे। गुनगुने पानी से नाक से खींचे कोरोना मरीज स्वस्थ्य होने भी घर पर 4-6 सप्ताह तक नमक-पानी के गरारे करें। शुगर लेवल 150-200 के बीच रहे। डायबिटीज वाले नियमित शुगर लेवल की जांच कराएं। सांस, गुर्दा, कैंसर, अंग प्रत्यारोपण संबंधी उपचार लेने वाले सतर्क रहें। कोरोना मरीज को यदि स्टॉयरायड दिया जा रहा है, तो वह विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह कर लें। शुगर संक्रमित कोरोना मरीज लेजर एंडोस्कोपी जरूर करा लें।