Wednesday, September 24

भोपाल में कैसे होगा गंभीर मरीजों का इलाज?:700 संक्रमित वेंटिलेटर पर, इनमें से कई की हालत नाजुक, 51 कोविड हॉस्पिटल में वेंटिलेटर बेड फुल

राजधानी में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर भयावह हो गई है। हालत ये है कि शहर के 51 सरकारी और निजी अस्पतालों में मौजूद 900 से ज्यादा वेंटिलेटर में से 700 पर संक्रमित भर्ती हैं। इनमें भी कई मरीज गंभीर हैं। जो 50 वेंटिलेटर बचे हैं, वो निजी अस्पतालों में हैं, लेकिन यहां ऑक्सीजन सपोर्ट, हाईफ्लो ऑक्सीजन सपोर्ट वाले मरीजों की संख्या ज्यादा है, ऐसे में कब इन मरीजों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ जाए, कहा नहीं जा सकता।

इसलिए इन अस्पतालों ने वेंटिलेटर रिजर्व कर रखे हैं। वे इन्हें फुल बता रहे हैं। सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने अप्रैल के 10 दिन में 40 वेंटिलेटर बढ़ाए, लेकिन इन्हीं दिनों में शहर में 5,647 संक्रमित मिल चुके हैं। पूरे मार्च में 7,820 मरीज मिले थे। केंद्र सरकार ने 240 वेंटिलेटर प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों को भेजे हैं। यहां से जरूरत के मुताबिक जिला अस्पतालों को वेंटिलेटर भेजे जाएंगे।

सार्थक पोर्टल पर वेंटिलेटर की अपडेट जानकारी नहीं
प्रशासन का दावा है कि वेंटिलेटर की स्थिति की जानकारी सार्थक पोर्टल पर हर दिन अपडेट की जा रही है, जबकि हकीकत ये है कि पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी गलत है। पोर्टल हमीदिया में 21 मरीज वेंटिलेटर पर होना बता रहा है, जबकि अभी यहां के सभी 60 वेंटिलेटर फुल हैं।

वेंटिलेटर फुल होने की 3 वजह: 10 में से 8 मरीज के सीटी में संक्रमण

1. पहले सीटी स्कोर 2 या 3 मिलता था, अब 5 से ज्यादा: कोरोना की पहली लहर में भोपाल में हर 10 में से 2-3 मरीज के एचआर सीटी में संक्रमण मिलता था। चार-पांच का संक्रमण स्कोर जीरो होता था, लेकिन अब 10 में से 8 मरीजों के सीटी में संक्रमण है। पहले पांच या उससे कम स्कोर वाले ज्यादा थे, अब 5 से अधिक स्कोर वाले ज्यादा हैं।

2. छठवें और सातवें दिन तेजी से फैल रहा संक्रमण: दूसरे-तीसरे दिन सीटी कराने पर संक्रमण एक-दो फीसदी होता है। डॉक्टर दवाइयां देकर घर भेज देते हैं, लेकिन छठे-सातवें दिन मरीज जब दोबारा अस्पताल पहुंचता है तो उसका ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल 60 प्रतिशत होता है, ऐसे में उसे रिकवर करना आसान नहीं होता है।

3. ज्यादातर वेंटिलेटर पर दूसरे शहरों से आए मरीज: भोपाल में जितने गंभीर मरीज हैं, उस हिसाब से वेंटिलेटर पर्याप्त हैं, लेकिन आसपास के शहरों से आने-वाले ज्यादातर मरीज गंभीर हैं। इनसे वेंटिलेटर भरे हुए हैं। चूंकि, ये मरीज चार से पांच दिन बाद भोपाल रैफर किए जा रहे हैं, इसलिए इनकी हालत बिगड़ी हुई रहती है।
एक्सपर्ट व्यू: अब 20-25 दिन में रिकवर हो रहे वेंटिलेटर वाले मरीज
गांधी मेडिकल कॉलेज के पल्मोनरी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ. निशांत श्रीवास्तव का कहना है, पहले वेंटिलेटर वाले मरीज औसतन 10 दिन में डिस्चार्ज हो जाते थे, लेकिन अब हालात अलग हैं। अब उन्हें 20 से 25 दिन या उससे ज्यादा समय रिकवर होने में लग रहा है। ऐसा नए स्ट्रेन के कारण हो रहा है। यही वजह है कि वेंटिलेटर ज्यादा समय के लिए भरे रहते हैं। हमीदिया में तो कई मरीज तीसरे-चौथे हफ्ते तक वेंटिलेटर पर हैं। ’