नईदिल्ली। आजकल अटल बिहारी वाजपेयी के राजधम्र की बहुत चर्चा होती है। होनी भी चाहिए क्योंकि राजधर्म का पालन किए बिना राजकाज नहीं चल सकता। किंतु वर्तमान में भारतीय राजनीति जिस दौर से गुजर रही है उसमें एक और धर्म अत्यंत महत्वपूर्ण बन चुका है और वह है गठबंधन धर्म। अटलजी के 90वें जन्मदिवस के अवसर पर उन्हें गठबंधन धर्म का प्रमाणिकता से पालन करने वाले पुरोधा के रूप में याद करना ही भारतीय राजनीति के इस भीष्म पितामह के लिए सच्ची शुभकामनाएं होगी। उनके मुरीद हर दल में रहे। यहां तक कि कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह उन्हें गुरूजी कहा करते थे और ममता बनर्जी को तो उनके खिलाफ कुछ सुनना बर्दाश्त नहीं था। एक बार जब अटलजी को राजग नेता के तौर पर हटाने की अनौपचारिक पहल हुई तो इसका सबसे ज्यादा विरोध ममता ने ही किया था।
यह सच है कि अटलजी गठबंधन सरकारों के जनक नहीं हैं। देश में पहले भी गठबंधन सरकारें चली हैं और वर्तमान में चल भी रही हैं और शायद लंबे समय तक चलती भी रहेंगी। लेकिन जिस प्रकार अटलजी ने केंद्र में राष्ट्रीय जनतंत्रिक गठबंधन की सरकार चलाई और गठबंधन धर्म का ईमानदारी से पालन किया वह अपने आप में एक अद्भुत मिसाल है। अटलजी ने 1996-1998 और 1999 में तनी बार गठबंधन के प्रधानमंत्री के नाते शपथ ली। इस दौरान समय-समय पर उन्होंने अनेक दलों से सहयोग प्राप्त किया। उनकी अपनी भाजपा के अलावा जम्मू-कश्मीर से केरल और पूर्वोत्तर के सभी राज्यों सहित देशभर के लगभग 30 दलों ने अटलजी की सरकारों के साथ सहयोग किया। इनमें से कुछ पार्टियों ने अटलजी के नेतृत्व वाले राजग को अलग-अलग समय पर छोड़ा भी, किंतु ऐसा करते समय किसी ने भी उन पर गठबंधन धर्म का पान का पालन करने आरोप नहीं लगाया और न ही अटलजी की कार्यशैली को लेकर किसी प्रकार के भेदभाव की बात कही।