Thursday, September 25

बेंगलुरु पर विपक्ष का मौन समझ से परे।

आज का भारत बदल रहा है ।ओर आज के नागरिकों कि सोच में परिवर्तन आया है । इतना ही नहीं ,वह सही ओर गलत का निर्णय, ही नहीं कर रहा बल्कि सही गलत पर अपने विचार भी बेबाकी से रख रहा है । वह किसी भी पार्टी य विचारधारा से जुडा हो पर जव सच बोलने की बारी आती है तो वह दम से सच वोलने का साहस करता देखा जा रहा है ।

पर यह बात आज के विपक्ष को समझ नहीं आ रही य वह समझना नहीं चाहता । ऐसे कई मामलों में विपक्ष की भूमिका निंदनीय रही है जिसे देश ने स्वीकार भी नहीं किया है ।किसी भी देश में विपक्ष की अहम भूमिका होती है वह सरकार का दूसरा हाथ होता है ।ओर सरकार के फैसलों की आलोचना भी करता है पर राष्ट्रहित के मुद्दों पर कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा भी रहता है ।

हम यदि हालही की घटना की बात करें तो बेंगलुरू कि घटना में विपक्ष ने एक बार फिर मौका खो दी जव वो गलत को गलत बोलने का साहस करती गलती कोई करे सभी को समान रुप से दंड का प्रवाधान होना चाहिए । यदि किसी ने किसी मुस्लिम धर्म के विषय में कुछ लिखा है य वोला है तो कानून है वह अपना काम करेगा उस पर विश्वास न करके आप स्वयं न्यायाधीश वन जाओ ये तो गलत है । थाना जलाना गाडियां जलाना तोडफ़ोड़ करना ये तो आतंकवाद से कम नहीं है ।

दुख की बात ये है इतने सवके बाद भी देश के विपक्ष की आवाज तक नहीं आती क्योंकि वहां किसी दूसरी पार्टी की सरकार है । इससे उन दंगाइयों के तो हौंसले बढेंगे । यदि सत्ता सहित पूरा विपक्ष इस तरह की गुंडागर्दी करनेवालों के खिलाफ खडे हो जायेंगे तो मैं समझता हूं आगे से कोई हिम्मत नहीं कर पायेगा । इससे तो ये लगता है इस तरह के दंगाईयों को पोषण का काम विपक्ष कर रहा है । यह समझा जा सकता है कि राजनैतिक मजबूरियां के चलते विपक्ष की आवाज नहीं निकलती पर जव मामला आम जनता से जुडा हो तो सभी को निर्णय राष्ट्रहित में लेना चाहिए । क्या एक व्यक्ति की सजा पूरे शहर को दी जानी चाहिए ये सोच बहुत घातक है समय रहते कठोर निर्णय की जरूरत है।