Monday, September 22

सरेआम देखने को मिलते हैं ऐसे नजारे देखने वालों को आ जाती है शर्म

                                                         

                                                                                           लखनऊ। आशिकों का सबसे बड़ा दर्द हे कि उन्हें 

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सुकून और फुर्सत के दो पल चुराने पड़ते हैं। एकांत में कुछ लम्हे चुराने को मिल जाएं तो तबियत मचल ही जाती है, फिर जगह चाहे जो भी हो। एक बार मचले तो आस पास का माहौल क्या है, कौन है, इसकी उन्हें परवाह कहां। उनका यह मचलना दूसरों को कुछ अलग तरह का दर्द दे जाता है। जिन्दा तो जिन्दा यह दीवाने आशिक कब्र में दफन लोगों को भी दर्द देने से नहीं चूकते। ऐसा ही कुछ नजारा देखने को मिलता है नवाबों की नगरी लखनऊ की रेजीडेंसी में। इस इमारत का जंग-ए-आजादी में एक बहुत बड़ा रोल रहा है। टूट फूट के बाद भी यह इमारत अपनी खूबसूरती बयां करती है। रेजीडेंसी लखनऊ में वह जगह है जहां सन 1957 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को जान और समझ सकते हैं। यहां लगभग 2000 लोगों की कब्रें बनी हुई हैं, लेकिन इश्क में डूबे दीवानों को क्या मतलब कि यहां कब्रों में कोई सो रहा हो।
जिधर निगाह घुमाएंगे रेजीडेंसी के खंडहरों में, झाडिय़ों में प्रेमी जोड़े मिल जाएंगे। यहां प्रेमी जोड़ों के आने में किसी को कोई ऐतराज नहीं है। यहां आने के बाद वह जो हरकतें करते हैं, परिवार के साथ यहां आए लोगों की नजरें झुकाने के लिए काफी है। इस जगह ने केवल अंग्रेज सैनिक मारे गए बल्कि भारतीय योद्धाओं ने भी अपने प्राणों की आहुति दी। इश्क में डूबे यह लव बड्र्स न केवल अपनी शर्म-ओ-हया, आबरू मिट्टी में मिला दे रहे हैं बल्कि यहां शहीदों की इज्जत पर पानी फेर रहे हैं। रेजीडेंसी को अवध के नवाब आसफ-उद-दौला ने 1775 में बनवाना शुरू किया था और 1800 ई में इसे नवाब सादत अली खान ने पूरा करवाया था। यहां नवा

बों की आरामगाह हुआ करती थी, जिसे बाद में अंग्रेजों के रिहाइश के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा। यह अंग्रेज नवाबों के दरबार में ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधित्व किया करते थे। 

वर्ष 1857 में यह जगह इतिहास में लखनऊ की घेराबंदी नाम से मशहूर घटना की गवाह बनी। यह घेरेबंदी 1 जुलाई से शुरू होकर 17 नवम्बर तक जारी रही। अवध के कमिश्रर हेनरी लारेंस एक हजार अंग्रेज 800 भारतीय सिपाहियों और कुछ तोपों के साथ रेजीडेंसी इमारत से ही आजादी के दीवानों से मोर्चा लेने लगा। इसका नतीजा हुआ कि पूरे अवध में अंग्रेजों की हुकूमत केवल रेजीडेंसी की इमारत में सिमट कर रह गई थी।