Wednesday, September 24

प्रकृति स्वयं बनाती हे अपना मार्ग स्वच्छ करने का -कोरोना

इस समय पूरी दुनिया दहशत मे जी रही हे ,दहशत भी इतनी की घर से निकलने मे डर लग रहा है ,जो पहले एक दूसरे से चिपक चिपक कर किश किया करते थे आज वो दूर से ही नमस्कार कर रहे हे ।हाथ मिलाने बाली संस्कृति भी दूर से नमस्कार करती नजर आ रही हे ।

आकाश की धुंध छट गई हे तारे दिखाई देने लगे है ,पहाड़ भी दिखाई देने लगा हे आसमान से प्रदूषण खत्म होने को हे नदियों का जल स्वच्छ हो गया हे मछलियों का अटखेलियां करना साफ दिखाई दे रहा है जंगली जानवर सडकों पर विचरण करने लगे हे पक्षी भी पूरी स्वतंत्रता से सडक पर विहार कर रहे हे आखिर पूरी दुनिया घरों मे जो है।

आज ऐसा लगने लगा हे मानव के बनाए इस मशीनी युग मे मानव ही प्रकृति का दुश्मन वन गया था ।प्रकृति ने जरा स अपना स्वरूप क्या दिखाया मानो चारो ओर प्रकृति को नया जीवन मिल गया हो ।ओर मनुष्य को उसका दोहन करने की घर मे रहने की सजा ।

मानव आज कितना वे सहाय नजर आ रहा , घर मे कैद जैसा झटपटा रहा हे , निकलने को आतुर हो रहा हे , आज उसे प्रकृति के दर्शन भी हो रहे हे , खबरों से ही सही फर नदियों के निर्मल होने कि सूचना तो मिल ही रही हे।

इस एक डेढ़ महीने मे भले ही अरवो की अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ हो पर प्रकृति ने यह अहसास करा दिया कि तुम कल भी मेरे अधीन थे ओर आज भी ,भाले ही तुमनें मेरा दोहन करके संसाधन वना लिए हो पर वो भी बौने है मेरे आगे ,कोन निमित्त वनता हे ,वो नियति पर निर्भर है पर सच तो यही हे कि प्रकृति के आगे सव असमर्थ है । वह अपना मार्ग स्वयं बनाती है।