Tuesday, October 21

विश्वास खोते बैंक

देश में इन दिनों बेंको की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं आये दिन होते घोटाले और एनपीए के चलते कई बैंक बंद होने की कगार पर आ गए हैं आजादी के बाद बैंक का राष्ट्रीयकरण कर आम नागरिको में एक विश्वास पैदा किया था पर वह राष्ट्रीयकरण आम उपभोक्ता के लिए जहा सुविधा लेकर आया वही राजनैतिक हस्तक्षेप के चलते दुखद खबर भी बन गया |

जिस तरह से बैंको में एनपीए का खेल उजागर हुआ हैं उससे आम आदमी की गढ़ी कमाई ठिकाने लग गयी हैं इसका असर सीधा – सीधा बैंको पर पड़ा बैंक कर्ज के बोझ के तले दबते चली गई और प्रोफिट की जगह लोस दिखाई देने लगा इससे कई बैंक बंद हो गए और कई बैंक बंद होने की कगार पर हैं बैंको द्वारा जिस तरह से लोन बाटा गया और उसकी रिकबरी उस तरह से नहीं की गयी जिससे बैंको को नुकसासन हुआ इतना ही नहीं कई हजार करोड़ रूपए लेकर बड़े – बड़े उधोगपति फरार हो गए उनके द्वारा पैसा जमा न करने के कारण छोटे उपभोक्ता अपनी मेहनत की कमाई से हाथ धो बैठे |

बैंको द्वारा उपभोक्ता के रकम की गारंटी एक लाख रूपए तह ही सीमित थी हाल ही में केंद्र सरकार ने इसे बड़ा कर 5 लाख रूपए कर दिया हैं | पर सवाल यह हैं जिन बैंको पर उपभोक्ता इतना भरोसा करता हैं और वह अपने जीवन भर की कमाई उन बैंको में छोड़ देता हैं और वह बैंक स्वयं की नीतियों के कारण बंद हो जाती हैं तो इसमे आम उपभोक्ता का क्या दोष ऐसे में लोगों का बैंको से विश्वास कम हो जाएगा और लोग अपना पैसा बैंको की जगह फिर साहूकारों के यहाँ रखना शुरू करेंगे |

बैंको की माली हालात को सुधारने के लिए केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक निरंतर प्रयास का रहे हैं और घाटे में चल रही बैंको को भी एकीकृत कर एक बड़ा समूह बनाने का कार्य चल रहा है पर प्रश्न इन सभी के लिए हैं की जब बैंक अपनी नीतिया सही नही रखेगी तो उसका सीधा असर उपभोक्ता पर पडेगा इसे रोकने के लिए ठोस रणनीति की जरुरत हैं जिससे बैंक बंद न हो और उपभोक्ता का पैसा डूबे न |