भोपाल। प्रदेश में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के दौरान की गई निवेश संबंधी घोषणाओं को जमीनी धरातल पर उतारने राज्य सरकार ने कई स्तरों का फालोअप चैनल बनाने का निर्णय लिया है, जिसके तहत 500 करोड़ रूपए से अधिक का निवेश करने वालों के प्रोजेक्ट की राह में रोड़ा बनने वाली बाधाओं को दूर करने की जिम्मेदारी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को सौंपी जानी है, लेकिन इस मंशा को पूरा करने में आईएएस के कंधे पर दो से तीन निवेशकों को फालो करने का भार आ सकता है।
राज्य सरकार ने सैद्धांतिक रूप से निर्णय लिया था कि 500 करोड़ रूपए से अधिक की परियोजना को जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी एक आईएएस को सौंपी जाएगी। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के दौरान राज्य सरकार को ऐसे 99 प्रस्ताव मिले हैं, जिसमें निवेशकों ने 500 करोड़ रूपए से अधिक की राशि निवेश करने की इच्छा जताई है। जाहिर है कि यदि एक प्रोजेक्ट पर एक आईएएस की जरूरत पड़ेगी, लेकिन जो निवेश प्रस्ताव आये हैं, वे कुल 21 विभागों से ही संबद्ध हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि इन विभागों से संबंद्ध अफसरों को ही यह जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। ऐसे में इन विभागों की अलग-अलग संस्थाओं में पदस्थ आईएएस को ही यह मौका दिए जाने की संभावना है। यदि ऐसा हुआ तो एक आईएएस को एक से अधिक निवेशकों के बीच सेतु का काम करना पड़ेगा, यह तय है। बताया जा रहा है कि राज्य सरकार की प्राथमिकता में प्रमुख सचिव, सचिव, अपर सचिव से लेकर उप सचिव स्तर तक के अधिकारी शामिल हैं, जिनको सरकार और निवेशकों के बीच सेतु का काम करना पड़ेगा, लेकिन अपन मुख्य सचिव स्तर के अधिकारियों को इससे राहत मिल सकती है।
राज्य सरकार ने प्रोजेक्ट की मॉनीटरिंग जिला स्तर पर होगी, यानि इसकी जिम्मेदारी कलेकटरों के कंधे पर होगी। वहीं 10 से अधिक और 100 करोड़ तक के प्रोजेक्ट की मॉनीटरिंग के लिए मप्र राज्य औद्योगिक विकास निगम को अधिकृत किया गया है।
अल्फा न्यूरेमिक होगा यूनिक कोड
राज्य सरकार निवेशक की पहचान के लिए जो यूनिक कोड़ जारी करेगी, वह अल्फा-न्यूरेमिक कोड होगा। यानि यदि कोई निवेशक कृषि क्षेत्र में निवेश करना चाहता है तो उसके कोड में पहले एजीआरआई लिखा होगा, फिर उसके बाद नंबर लिखा होगा। जब भी निवेशक उद्योग विभाग से किसी मसले पर संपर्क करेगा।