उज्जैन। शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ हो रहा है। हमारे पूर्वजों ने इन 9 दिनों में माता की भक्ति के साथ ही योग का विधान भी निश्चित किया है। हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं। नवरात्रि में हर दिन एक विशेष चक्र को जाग्रत किया जाता है, जिससे हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। हम अगर इस ऊर्जा का ठीक प्रबंधन कर लें तो असाधारण सफलता भी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। जैसे-जैसे हम ऊर्जा को एक-एक चक्र से ऊपर उठाते जाते हैं। हमारे व्यक्तित्व में चमत्कारी परिवर्तन दिखने लगते हैं। आज नवरात्रि के प्रथम दिन हम आपको शरीर में स्थित सातों चक्रों के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-
मूलाधार चक्र: नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्यका प्रतीक भी माना जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन योगीजन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं व योग साधना करते हैं।
मूलाधार या मूल चक्र प्रवृत्ति, सुरक्षा, अस्तित्व और मानव की मौलिक क्षमता से संबंधित है। यह केेंद्र गुप्तांग और गुदा के बीच अवस्थित होता है। इस क्षेत्र में एक मांसपेशी होती है, जो यौन क्रिया में स्खलन को नियंत्रित करती है। मूलाधार चक्र का प्रतीक लाल रंग और चार पंखुडियों वाला कमल है। इसका मुख्य विषय कामवासना और लालसा है। शारीरिक रूप से मूलाधार काम-वासना को, मानसिक रूप से स्थायित्व को, भावनात्मक रूप से इंद्रिय सुख को और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है।
कैसी होती है इसकी प्रकृति: काम प्रधान/सिर्फ देह ही दिखती है। व्यक्ति अक्सर सिर्फ खुद के बारे में सोचता है। विचारों और कल्पनाओं में खोया रहता है।
आध्यात्मिक प्रभाव क्या: हम वासना से घिरे रहते हैं। मन की इच्छाएं कभी समाप्त नहीं होती। एक के बाद एक नई इच्छाएं जागती रहती हैं।
प्रोफेशनल प्रभाव क्या: टीम वर्क और टीम भावना बढ़ेगी। मिलजुलकर काम करने की प्रवृत्ति आएगी। मन काम में लगेगा।
स्वाधिष्ठान चक्र: नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। ब्रह्मशक्ति अर्थात तप की शक्ति स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।
स्वाधिष्ठान चक्र के बारे में: स्वाधिष्ठान चक्र त्रिकास्थि में अवस्थित होता है और अंडकोष या अंडाश्य के परस्पर के मेल से विभिन्न तरह का यौन अंत:स्त्राव उत्पन्न करता है, जो प्रजनन चक्र से जुड़ा होता है। त्रिक चक्र का प्रतीक छह पंखुडियों और उससे परस्पर जुदा नारंगी रंग का एक कमल है। स्वाधिष्ठान का मुख्य विषय संबंध, हिंसा, व्यसनों, मौलिक भावनात्मक आवश्यकताएं और सुख है। शारीरिक रूप से स्वाधिष्ठान प्रजनन, मानसिक रूप से रचनात्मक, भावनात्मक रूप से खुशी और आध्यात्मिक रूप से उत्सुकता को नियंत्रित करता है।
कैसी होती है प्रकृति: स्वाधिष्ठान चक्र अगर जागृत ना हो तो व्यक्ति की रचनात्मकता बाधित होती है। वो नीरसता से काम करता है। नए विचारों और रचनात्मकता दोनों ही दिमाग में प्रवेश नहीं पा सकते।
आध्यात्मिक प्रभाव क्या: विचार नियंत्रित, शुद्ध होना शुरू भर होगा। देह के अलावा मन भी दिखेगा।
प्रोफेशनल प्रभाव क्या: कमिटमेंट और करेज बढ़ेगा। काम में रचनात्मकता आएगी। नए विचार आएंगे।
मणिपुर चक्र: नवरात्रि का तीसरा दिन माता चंद्रघंटा को समर्पित है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र से जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
जानिए मणिपुर चक्र के बारे में: मणिपुर या मणिपुर चक्र चयापचय और पाचन तंत्र से संबंधित है। ये चक्र नाभि स्थान पर होता है। ये पाचन में शरीर के लिए खाद्य पदार्थों को ऊर्जा में रूपांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसका प्रतीक दस पंखुडियां वाला कमल है। मणिपुर चक्र से मेल खाता है रंग पीला है। मुख्य विषय जो मणिपुर द्वारा नियंत्रित होते हैं, वे हैं- निजी बल, भय, व्यग्रता और सहज या मौलिक से लेकर जटिल भावना तक के परिवर्तन। शारीरिक रूप से मणिपुर चक्र पाचन, मानसिक रूप से निजी बल, भावनात्मक रूप से व्यापक्ता और आध्यात्मिक रूप से सभी उपादानों के विकास को नियंत्रित करता है।
कैसी होती है प्रकृति: मणिपुर चक्र बाधित होने पर मनुष्य में असंतोष की भावना बढ़ जाती है। मनुष्य संसारिक कर्मों में पूरी तरह उलझ कर रह जाता है। उसके मन में संतोष का भाव नहीं रहता, वो हमेशा अपनी असंतुष्टि से परेशान रहता है।
आध्यात्मिक प्रभाव क्या: कभी-कभी विचारशून्य होंगे। संतोष जागेगा।
प्रोफेशनल प्रभाव क्या: लीडरशीप बढ़ेगी। संतुष्टि का भाव बढ़ेगा औरटीम को कुछ देने की प्रवृत्ति आएगी।
अनाहत चक्र: नवरात्रि के चौथे दिन की प्रमुख देवी मां कूष्मांडा हैं। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। मां कूष्मांडा के पूजन से हमारे शरीर का अनाहत चक्रजागृत होता है।
जानिए अनाहत चक्र के बारे में: अनाहत चक्र बाल्यग्रंथि से संबंधित है यह सीने में स्थित होती है। बाल्यग्रंथि प्रणाली का तत्व है, इसके साथ ही यह अंत:स्त्रावी तंत्र का भी हिस्सा है। यह चक्र तनाव के प्रतिकूल प्रभाव से भी बचाव का काम करता है। अनाहत का प्रतीक बारह पंखुडियों का एक कमल है। अनाहत हरे या गुलाबी रंग से संबंधित है। अनाहत से जुड़े मुख्य विषय अटिल भावनाएं, करूणा, सहृदयता, समर्पित प्रेम, संतुलन, अस्वीकृति और कल्याण है। शारीरिक रूप से अनाहत संचालन को नियंत्रित करता है, भावनात्मक रूप से अपने दूसरों के लिए समर्पित प्रेम, मनासिक रूप से आवेश और आध्यात्मिक रूप से समर्पण को नियंत्रित करता है।
कैसी होती है प्रकृति: इस चक्र के बाधित होने से व्यक्ति थोड़ा डरपोक हो जाता है। वो अपनी बात कहने में हिचकने लगता है तथा कई बार सही बात का भी समर्थन नहीं कर पाता।
आध्यात्मिक प्रभाव क्या: मन प्रसन्न रहने लगेगा। आत्मा दिखेगी।
प्रोफेशनल प्रभाव क्या: मानवीयता और ईमानदारी आएगी। मीटिंग या सेमिनार आदि में बिना डरे झिझके अपनी बात कह पाएंगे।
पांचवा दिन विशुद्ध चक्र: नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए, जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति व सुख का अनुभव कराती है।
जानिए विशुद्ध चक्र के बारे में: यह चक्र गलगं्रथि, जो गले में होती है, के समानांतर है और थायरॉयड हारमोन उत्पन्न करता है, जिससे विकास और परिपपक्वता आती है। इसका प्रतीक सोलह पंखुडियों वाला कमल है। विशुद्ध की पहचान हल्के या पीलापन लिए हुए नीला या फिरोजी रंग है। यह आत्माभिव्यक्ति और संप्रेषण जैसे विषयों को नियंत्रित करता है। शारीरिक रूप से विशुद्ध संप्रेषण, भावनात्मक रूप से स्वतंत्रता, मानसिक रूप से उन्मुक्त विचार और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है।
कैसी होती है प्रकृति: इस चक्र के बाधित होने पर व्यक्ति निस्तेज होने लगता है। बीमारियां घेरती है और वाणी का प्रभाव लगभग समाप्त हो जाता है।
आध्यात्मिक प्रभाव क्या: चेहरे पर तेज, शांति। परमात्मा की हल्की झलक।
प्रोफेशनल प्रभाव क्या: वैल्यूज को समझेंगे। वाणी में प्रभाव आएगा। व्यक्तित्व आकर्षक होगा तथा आपकी बात स्वीकार होने लगेगी।
छठा दिन- आज्ञा चक्र: नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के कात्यायनी रूप की पूजा की जाती है। इनकी उपासना करने से आसुरी प्रवृत्ति व शत्रुता का नाश होता है, जो कि जीवन प्रबंधन का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में अवस्थित होता है।
जानिए आज्ञा चक्र के बारे में: आज्ञा चक्र दोनों भौहों के मध्य स्थित होता है। आज्ञा चक्र का प्रतीक दो पंखुडियों वाला कमल है और यह सफेद, नीले या गहरे नीले रंग से मेल खाता है। आज्ञा का मुख्य विषय उच्च और निम्र अहम को संतुलित करना और अंतरस्थ मार्गदर्शन पर विश्वास करना है। आज्ञा का निहित भाव अंतरज्ञान को उपयोग में लाना है। मानसिक रूप से, आज्ञा दृश्य चेतना के साथ जुड़ा होता है। भावनात्मक रूप से, आज्ञा शुद्धता के साथ सहज ज्ञान के स्तर से जुड़ा होता है।
कैसी होती है प्रकृति: इस चक्र में बाधा के कारण व्यक्ति पुराने मान-अपमान, अपराध बोध आदि से ग्रसित रहता है। सिर दर्द, तनाव आदि बने रहते हैं। क्षमाशीलता का अभाव होता है।
आध्यात्कि प्रभाव क्या: अज्ञात भय से मुक्ति। परमात्मा की झलक अधिक समय के लिए।
प्रोफेशनल प्रभाव क्या: एग्रेसिवनेस और फीयरलेसनेस आएगा। क्षमा कर पाएंगे। तनावमुक्त काम कर सकेंगे।
सातवां दिन भानु चक्र: महाशक्ति मां दुर्गा का सातवां स्वरूप है कालरात्रि। मां कालरात्रि काल का नाश करने वाली हैं, इसी वजह से इन्हें कालरात्रि कहा जाता है। ये दिन भानु चक्र की शक्तियां जागृत होती हैं। वास्तव में भानु चक्र न होकर नाड़ी है। इसे सूर्य अथवा पिंगला नाडी भी कहते हैं।
जानिए क्या है भानु चक्र यानी सूर्य नाड़ी: मनुष्य के शरीर में दहिनी ओर इच्छा शक्ति है। इसे ही पिंगला नाड़ी भी कहते हैं। यही नाड़ी इच्छा पूर्ति के लिए कार्य करने की शक्ति देती है। यह नाड़ी शारीरिक एवं बौद्धिक कार्य करने वाली है। यह नाड़ी शरीर के संपूर्ण दाएं हिस्से को प्रभावित करती है।
यह चक्र भविष्य काल, अतिद्भेय चेतन व रजोगुण का प्रतीक है। इसके सूक्षम गुण स्वाभिमान, कृति, शारीरिक एवं मानसिक हलचल व शारीरिक एवं बौद्धिक कार्य हैं। इसमें बाधा होने पर अहंकार, हठयोग, जिद्दी स्वभाव, भविष्य के बारे में बहुत ज्यादा सोचना, बेशर्मी आदि अवगुण आ जाते हैं।
आठवां दिन सोम चक्र: नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। नवरात्रि का आठवां दिन हमारे शरीर का सोम चक्र जागृत करने का दिन है। श्री महागौरी की आराधना से सोम चक्र जागृत हो जाता है और इस चक्र से संबंधित सभी शक्तियां श्रद्धालु को प्राप्त हो जाती हैं। वास्तव में सोम चक्र न होकर नाड़ी है। इसे चंद्र व इडा नाड़ी भी कहते हैं।
जानिए क्या है सोम चक्र यानी चंद्र नाड़ी: यह नाड़ी मनुष्य के शरीर में अधिभौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्र की बाईं ओर इच्छा शक्ति है। इसे इडा नाड़ी भी कहते हैं। यह नाड़ी शरीर के संपूर्ण बांए हिस्से को प्रभावित करती है। यही नाड़ी भूतकालीन स्मृतियों को सचेतन करती है और उस वजह से क्रिया करने में आसानी होती हैं। जब तक यह शक्ति कार्यरत रहती है, तब तक मनुष्य में जीवन जीने की अभिलाषा रहती है।
भूतकाल, सुप्त चेतन, प्रति अहंकार इकसे गुण हैं। इस नाड़ी के सूक्षम गुण भावना, पवित्रता, अस्तित्व, आनंद इच्छा व मांगल्य है। इन नाड़ी में किसी भी प्रकार की बाधा होने पर आलस, अंधश्रद्धा, अंधविश्वास, अपराध की भावना, अश£ील लेखन या वाचन करना आदि अवगुण आ जाते हैं।