Tuesday, September 23

तो मोदी क्या? यह बोलते…..

भारत जागरूक हो रहा है, भारत विकसित हो रहा है, भारतीय समाज परिणाम चाहने लगा है, भारत के लोग उत्तर प्रतिउत्तर करने लगे हैं इन सब के बीच भारत की मीडिय़ा खास करके इलेक्ट्रोनिक मीडिय़ा तिल से लेकर पहाड़ तक पर परिचर्चा करने में लगा हुआ है। भले ही उससे देश बनता हो या बिगड़ता हो, भले उससे भारत की छवि धूमिल होती हो, या फिर भारतीय समाज में वैमानसता फैले उससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।
हाल ही में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के मुसलमानों को लेकर जो टिप्पणी की उससे एक ओर जहां हिन्दू समाज में आलोचना शुरू हो गई और वह कहीं न कहीं अपने आप को ठगासा महसूस करने लगा। वहीं दूसरी ओर मुसलमान समुदाय भी दो भागों में बटे दिखाई दिए, कोई मोदी की तारीफ कर रहा था, तो कोई उन पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा था। इन सब के बीच भारतीय मीडिय़ा अपने-अपने चैनलों पर इस टिप्पणी पर लोगों का समय बर्बादा कर रहे थे और ऐसा लग रहा था कि अब देश के प्रधान मंत्री को कुछ भी बोलने से पहले भारतीय मीडिय़ा से अनुमति लेनी चाहिए कि उन्हें किसके बारे में क्या बोलना है। राष्ट्र के मुखिया होने के नाते मोदी ने जब पत्रकार के प्रश्न का उत्तर दिया तो शायद पत्रकार को भी यह आशा नहीं थी कि एक देश का प्रधानमंत्री जिस पर हिन्दूत्व की छाप लगी हो और उसके मुख्यमंत्री काल में हुए अपराधों को एक समूह वर्ग जिम्मेदार मानता हो और वह उसी वर्ग को राष्ट्र प्रेम के तराजू पर खरा उतरने की बात कह रहे हैं। उन्होंने भारतीय मुसलमानों को सच्चा राष्ट्र प्रेमी कहा इसी पर पूरे भारत में शब्दों के बाणों से हमले शुरू हो गए।
पर क्या? मोदी कहते कि भारत का मुसलमान आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहता है, क्या? मोदी यह कहते की भारत का मुसलमान भारत में रह कर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाता है, क्या? मोदी यह कहते भारत का मुसलमान फतबों की राह पर चलता है बगैरा-बगैरा। पर यह कहना संभव नहीं रहता क्योंकि चंद लोगों के कारण पूरी समाज को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जब एक पिता की भूमिका में व्यक्ति प्रवेश करता है तो उसे अपने बिगड़े हुए लड़के की गलतियों को भी अंदेखा करना पड़ता है। लोगों की अशंका इसलिए और बनी रहती है क्योंकि मोहम्मद गौरी से लेकर मोहम्मद गजनबी तक का इतिहास लोगों के सामने आ जाता है। इस बजहा से जब कोई इस तरह की बात करता है तो लोग अपनी प्रति क्रियाएं देने लगते हैं। इतना ही नहीं दो भागों में बटे मुस्लिम समुदाय में से जामा मस्जित के इमाम सहाब फरमाते हैं कि उन्हें किसी के सार्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं है, और वह जब चुनाव में फतवा जारी करके कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने की अपील करते हैं तो सही है। इस तरह नरेंद्र मोदी की बात को लोगों ने अलग-अलग तरह से देखा पर सच तो यह है कि जब कोई व्यक्ति दायित्व के पद पर पहुंता है तो उसकी जिम्मेदारियां और बड़ जाती हैं। व्यक्तिगत सोच से कहीं ज्यादा राष्ट्रीय एकता दिखाई देने लगती है और उनके द्वारा बोले गए शब्दों के राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर पर बड़े मायने होते हैं। इसलिए मोदी ने जो कुछ बोला शायद वह इन सब बातों को ध्यान में रखकर कर ही बोला होगा। अब भले ही मीडिय़ा कुछ भी अर्थ निकाले विपक्षी पार्टियां कुछ भी अर्थ निकालें और कट्टरपंथी कुछ भी अर्थ निकालें उससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।
प्रदीप राजपूत