Wednesday, September 24

अपने ही डाल रहे भाजपा को मुश्किल में

vijay goelमोहित सिंह
लखनऊ। एक तरफ संघ और मोदी देश को एक सूत्र में बांधने को पुरजोर प्रयास में लगे हैं। मोदी और संघ एशिया के अन्य देशों को भी भारत से जोडऩे को संकल्पित नजर आ रहे हैं। वहीं पार्टी के कुछ नेता इस प्रयास में छेद करने में जुटे हैं। पूर्ववर्ती सरकार के वक्त मुम्बई में जो जाति और उत्तर भारतीयों को अलग करार देने वाले नेताओं ने जो जहर की खेती करी थी उसको संघ और मोदी ने ध्वस्त कर दिया था। कोशिश तो गुजरात में भी की गयी थी लेकिन नरेन्द्र मोदी ने उस कोशिश को नाकाम कर दिया था जिसका असर मुम्बई के कई प्रभावशाली या यूं कह लीजिये कि अलगाववादी ताकतों के हौसले पस्त कर दिये थे। मुम्बई में जो अलगाववाद का दृश्य कुछ तथाकथित नेताओं ने उभारा था उसको कुछ दिनों में ही संघ और भाजपा ने उभरने नहीं दिया। लेकिन गत दिवस भाजपा के एक सांसद विजय गोयल ने दिल्ली को मुम्बई की तर्ज पर नया अध्याय लिखने की एक नाकाम कोशिश की। ये सांसद महोदय और कोई नहीं बल्कि एक वक्त में अटल बिहारी बाजपेयी के दिल्ली के सेवक माने जाते रहे हैं। कहते हैं कि अपने ही आगे बढ़ाते हैं और कभी-कभी अपने ही गर्त में डुबो देते हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री का वर्षों से सपना साल रहे श्री गोयल को किस्मत ने नाकामी दिलायी दिल्ली में चुनाव के बाद जो राजनैतिक परिदृश्य उभरा उसने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इतना ही नहीं मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उनके कैबिनेट मंत्री बनने का सपना टूट गया। गौरतलब हो कि संघ और मोदी की आंख के तारे कहे जाने वाले अमित शाह की भी उन पर नजर नहीं गयी। कई बार प्रयास करने के बाद भी उन्हें सत्ता से दूर रखा गया और अब जब दिल्ली चुनाव और दिल्ली राज्य की सरकार को लेकर जो मंथन हुआ उसमें भी उन्हें अमृत चखने को नहीं मिला वहां भी जगदीश मुखी के दिल्ली के सीएम बनने पर मुहर लगा दी इससे द्रवित सांसद ने अपनी इस पीड़ा को आखिरकार दर्शा दिया। सांसद ने अलगाववादका नारा बुलन्द करते हुए मोदी सरकार की बेचैनी बढ़ा दी जहां एक ओर अमित शाह पर आज पूरे देश में पार्टी को शिखर पर पहुंचाने का जिम्मा है जिसको लेकर वे 12 से 14 घंटे काम कर रहे हैं हाल में होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपाई जी तोड़ मेहनत कर यहां कमल खिलाने में लगे हैं। वहीं ऐसे वक्त में अपनी ही पार्टी के नेता का ऐसा बयान जिसमें एक सूत्र में बांधने की बात तो दूर अलगाववाद की बू आने लगी है। एक तरफ मोदी और संघ प्रभावशाली देशों में भारत का नाम रौशन कर अग्रिम पंक्ति में खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं वहीं पार्टी के ऐसे तथाकथित कुछ नेता सत्ता को पीपासा पाल कर पार्टी को कमजोर करने में जुटे हैं। गौरतलब हो कि दिल्ली में बिहार उत्तर प्रदेश के लोगों को बसने नहीं देने का बयान सांसद ने क्यों दिया ऐसी कौन सी उन्हें बात रास नहीं आयी जिससे उन्होंने ऐसा बयान उस वक्त दे दिया जब इन प्रदेशों में मोदी की लहर अभी भी बह रही है। शुरूआती दौर में ऐसे बयानों से आने वाले वक्त में नरेन्द्र मोदी, संघ और अमित शाह की रणनीति बनने से पहले ही टूटकर बिखर सकती है। ऐसे बेबुनियाद बयानों से पस्त हो चुके विरोधी दलों को एक बार फिर ऊर्जा मिल सकती है। जिससे भाजपा की मुश्किलों का बढऩा भी लगभग तय है। वैसे भी उत्तर प्रदेश में 2017 के विधान सभा चुनाव में हकीकतन भाजपा और संघ को तमाम मुद्दों पर मतदाताओं को रिझाने में दिक्कत आना स्वाभाविक है।