नईदिल्ली। 1965 में हिंदी को प्रथम आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला। पहले अंग्रेजी प्रथम आधिकारिक भाषा थी। बाद में अंग्रेजी द्वितीय आधिकारिक भाषा हो गई। 48 करोड लोग हिंदी भाषा का उपयोग करते हैं दुनिया में इनमें से करीब 37 करोड़ लोग इसे अपनी मातृभाषा मानते हैं। सबसे अधिक हिंदी भाषी भारत में हैं। 130 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है पूरी दुनिया में। चीनी भाषा के बाद यह दूसरी भाषा है, जिसे बोलने वाले इतनी अधिक संख्या में हैं।
केंद्र की मोदी सरकार ने भारत सरकार के सभी ट्विट व फेसबुक अकाउंट्स पर हिंदी को बढ़ावा देने संबंधी सर्कुलर क्या दोहराया, गैर हिंदीभाषी राज्यों में तलवारें तन गईं। बाद में मोदी सरकार ने स्पष्ट भी कर दिया कि यह सर्कुलर पूर्ववर्ती सरकार ने राजभाषा नियमों के तहत जारी किया था, जिसमें हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी को बढ़ावा देने की बात कही गई है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह जिनके अंतर्गत ही राजभाषा विभाग आता है, ने भी साफ कर दिया है कि उनकी सरकार की मंशा हिंदी को पर्याप्त सम्मान देने की जरूर है, लेकिन उसे किसी पर थोपा नहीं जाएगा। यानी मामला पुराना था। लेकिन मुद्दों की तलाश में घात लगाए बैठे डीएमके के एम करूणानिधि ने तत्काल मोदी सरकार को सिर्फ विकास कार्यो पर फोकस रहने की नसीहत दे डाली तो तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने मोदी को पत्र लिखकर अंग्रेजी को वरीयता देने का आग्रह कर दिया।
रही-सही कसर ओडिशा विधानसभा में एक विधायक को हिंदी में सवाल पूछने की अनुमति नहीं देने और उस पर शिवसेना के विरोध ने कर दी। यानी इस बदलते जमाने में भी भाषा को लेकर राजनीतिक सोच और तेवर वही पुराने के पुराने रहे। यहां रोचक बात यह रही कि इस विवाद के करीब सप्ताह भर पहले 13 जून को एक अन्य गैर हिंदीभाषी नवगठित राज्य तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव विधानसभा में अंग्रेजी और तेलुगू के साथ-साथ हिंदी-उर्दू का भी इस्तेमाल करते नजर आए। क्या यह इस बात का संकेत है कि राजनीतिक स्तर पर हिंदी को लेकर कुछ नहीं बदला है, लेकिन बदलाव की शुरूआत तो हो चुकी है।
खुद ही ढंूढ लेगी रास्ता
दक्षिणी राज्यों के बड़े शहरों में बॉलीवुड पहचान बनाता जा रहा है। चेन्नई एक्सप्रेस ने अपने पहले दो हफ्ते में तमिलनाडु और केरज जैसे उन क्षेत्रों में साढ़े आठ करोड़ रूपए से अधिक की कमाई की थी, जो हिंदी विरोधी माने जाते हैं। इसी तरह थ्री इडियट्स ने इस क्षेत्र में दो हफ्ते में साढ़े चार करोड़ रूपए की कमाई की थी। बेंगलुरू और हैदराबाद जैसे शहरों को मिला लें तो यह कमाई और भी ज्यादा होगी। कुछ अरसा पहले कर्नाटक से भाजपा नेता अनंत कुमार खुद अनौपचारिक बातचीत में स्वीकार चुके हैं कि यदि उन्हें हिंदी नहीं आती तो वे राष्ट्रीय राजनीति में नहीं आ पाते। हिंदी के इस महत्व को राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले दक्षिण के युवा भी समझने लगे हैं।