नईदिल्ली। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की फजीहत जारी है। जल्दबाजी में दिल्ली की कुर्सी छोड़ लोकसभा चुनावों मं उतरी पार्टी में नित विवाद उभर रहे हैं। पार्टी नेताओं के बीच विवाद और आरोप-प्रत्यारोप भी लगातार देखने सुनने मिल रहे हैं। इसके साथ ही कुछ अंतराल में इस्तीफों का दौर भी जारी है। हालत यह है कि पार्टी को अपनी साख बचाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। हालांकि अब चुनावी राजनीति से फुरसत मिलते ही पार्टी फिर से खुद को संवारने में जुट गई है। अरविंद केजरीवाल पार्टी नेताओं के मनमुटाव खत्म करने में जुटे हैं और सांगठनिक ढांचे में भी बड़ा बदलाव करने जा रहे हैं, लेकिन सिर्फ आप ही नहीं देश की कई ऐसी पार्टियां हैं, जो लोकसभा चुनावों के बाद राजनीति में बने रहने की जद्दोजहद में लगी है। हालांकि, आप की तरह इनके नेताओं में मनमुटाव नहीं है, लेकिन बावजूद इसके अंदरूनी स्तर पर काफी उठा पटक जारी है।
आप के अलावा कभी सत्ता के गलियारों में ताल ठोकते दिखते और सरकारें बनाने गिराने का दावा करने वाले दूसरे दल भी आज अपनी साख बचाने में जुटे हैं। बसपा, सपा, आरजेडी, नेशनल कॉन्फे्रंस, जनता दल और दक्षिण की करूणानिधि के नेतृत्व वाली एआईएडीएमके इस फेहरिस्त में शामिल हैं। हालांकि इनमें अंदरूनी कलह खुलकर बाहर तो नहीं आ रही है, लेकिन दिल्ली में कमजोर पड़ी पकड़ का खामियाजा इन पार्टियों को अपने-अपने राज्यों में उठाना पड़ रहा है। बसपा को तो उत्तर प्रदेश से जनाधार ही खत्म हो चुका है, वहीं राज्य में सत्ता संभाल रही समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का तीसरे मोर्चे के पीएम बनने का सपना भी चकनाचूर हो गया। वे और उनके सुपुत्र अखिलेश यादव यूं भी इन दिनों राज्य में बढ़ते अपराध और बलात्कार की घटनाओं से सवालों के घेरे में हैं। यही हाल बिहार में लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल और नीतीश की जनता दल के साथ है। पार्टी बिखरती दिख रही है। बड़े चेहरे इस्तीफा देकर किनारा कर रहे हैं। चंदा भी कम हो रहा है और जनाधार भी। दिल्ली की जनता खासी नाराज है। केजरीवाल की साख भी दांव पर है, कानूनी पचड़ों में उलझ गए हैं। चुनाव हार चुके हैं सभी बड़े नेता। आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाजी का दौर चल रहा है। बावजूद इसके दिल्ली की सत्ता में वापसी की कोशिशें जारी। अनर्गल बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप के साथ दिल्ली में लोगों के भरोसे को ठुकराना भारी पड़ा। केजरीवाल भी अपनी छवि को नहीं बचा पाए। चुनावी गणित समझने में फेल हुए, करारी हार मिली। बड़े नेताओं ने जिस दम से कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेताओं को चुनौती दी थी, वे दाव खोखले निकले। पार्टी आपसी झगड़े सुलझा कर नेताओं को मनाने में जुटी है। शाजिया इल्मी जैसे चेहरे को वापस लाने के प्रयास होंगे।