नईदिल्ली। भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी की सत्ता पाने की महत्वाकांक्षा के चलते आडवाणी यह भी भूल बैठे हैं कि जिस भाजपा ने आज देश में सत्ता संभाली है उसके जनक वह स्वयं भी हैं। पर उनका व्यवहार विगत कुछ दिनों से ऐसा चल रहा है मानो वह विपक्ष के खिलाफ मोर्चा खोले हों।
वैसे गलती उनकी नहीं है सत्ता की दहलीज पर पहुंचते-पहुंचते उन्होंने अधिकतर समय विपक्ष के रूप में निकाला है। इसीलिए उनकी भाषा शैली भी विपक्ष जैसे हो चुकी है। वर्तमान समय में जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता पाने के लिए नरेंद्र मोदी के सहारे अपने मिशन को पूरा करने में लगी थी तब भी लालकृष्ण आडवाणी बीच-बीच में अपनी विपक्षी भूमिका से भाजपा को ही मुश्किल में डाल रहे थे। ऐसे में भाजपा को दौहरी मार झेलनी ही पड़ रही थी। एक ओर विपक्ष का सामना करना पड़ रहा था और दूसरी ओर अपने ही घर संभालना था। पर आडवाणी जी अपनी विपक्षी भूमिका निरंतर बनाये हुए थे। सत्ता प्राप्ती के बाद भी जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में देश के सामने आ गए और पूरा भारत खुशी से झूम उठा। कि देश में 30 साल बाद स्थिाई सरकार का जन्म हुआ है। तब भी आडवाणी सत्ता के महत्वाकांक्षा के चलते दूर-दूर दिखाई दे रहे थे। उन्होंने संसद के सेंट्रल हॉल में जब मोदी के प्रति जो टिप्पणी की उससे भी पूरा देश आहत हो गया। हाल ही में संसद में शपथ ग्रहण के दौरान नरेंद्र मोदी के पास बैठने में भी उन्होंने अपनी खींच साफ प्रदर्शित की इससे ऐसा लगता है कि या तो श्री लालकृष्णा आडवाणी को या तो राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिए या फिर विपक्ष में शामिल हो जाना चाहिए।