भोपाल। सोमवार को वर्षो से यूपी में सपा की सत्ता का लोभ करते हुए लाभ कमाने वाले नरेश अग्रवाल ने एकायक राज्य सभा का टिकिट कटने के बाद सपा से नाता तोड़कर सत्तासीन भाजपा का दामन थाम लिया। यहां कुछ बाते कहने योग्य है कि राजनीति में विचार आदर्श पूरी तरह लोप हो चुके है। कहां समाजवादी और अब सीधे दक्षिणपंथी भाजपाई हो गए नरेश भाई। फिर जैसा कि राजनीति में नेताओं के बिगड़ते बोल जीभ फिसलने से नहीं बदलते बल्कि सोची समझी भाषा के तहत बिगड़ते है। वहीं नरेश अग्रवाल जी ने गले में भाजपा का पट्टा लटकाने के साथ ही बोल दिया कि सपा ने उन्हें राज्यसभा न पहुंचाकर तो गलती की है। साथ ही जिसको भेजा जा रहा है, वह भी सम्मान की हकदार नहीं है। यदि राजनीति के इतर कोई बौद्धिक और समझदार व्यक्ति राज्यसभा पहुंचता है तो उसके पिछले रोजगार या कर्म से नाता जोड़कर घिनोनी शब्दावली प्रयोग किया जाता है। वे शब्द हम तो दोहराना नहीं चाहते है लेकिन नरेश अग्रवाल जी को याद दिलाना चाहते है कि अग्रवाल समाज जिस भगवान तुल्य अग्रसेन जी को अपना आराध्य मानता है, वे समाजवाद की पक्के पक्षधर थे। उनके राज्य में आदमी का मूल्य समानता और योग्यता पर आधारित था। ऐसा अग्रसेन महाराज ने जीवन काल में किया और उसे जिया। फिर अपने ही आराध्य के विचारों के विपरीत नरेश अग्रवाल जी की भाषा अशोभनीय है। आप तो कहेंगे भैया राजनीति में सब चलता है। लेकिन मानवीयता में ऐसा नहीं चलता है। अब नये दल के साथ राजनीति की सवारी करने निकले नरेश जी को नई सवारी किस तरह भाती है। यह देखने वाली बात होगी। साथ नये राजनीतिक दल में उनको कितना सम्मान मिलता है, वह भी देखने योग्य होगा। क्योंकि बिगड़े बोल बोलने में भाजपा के नेता भी किसी से पीछे थोड़े ही है।
