Sunday, November 9

सवाल-जानलेवा खुले बोर, किसी चीज का प्रतीक बन चुके है

भोपाल। देवास जिले के खाते गांव में  खुले बोर में एक बच्चे के गिरने से लेकर परमात्मा की कृपा से उसके सुरक्षित रहने की बात अब सबके सामने है। लेकिन यह पहली घटना तो है नहीं कि बच्चों का बोर में गिरना हुआ हो, लेकिन हमने इस प्रकार की घटनाओं से शिक्षा क्या ली है। क्या हम हर बार घटना होने का ही इंतजार करते रहे। क्या घटना के बाद मिलने वाले सबक को भूल जाए। यह कहां की शिक्षा है। जिसमें राजनीतिक और लोकशाही के अंदाज में किसी घटनाक्रम को यथा स्थिति में बनाए रखने की आदत शुमार हो रही है। इस बार फिर बोर मे ंबच्चे के गिरने की घटना ने कई सवाल खड़े किए है। आखिर क्या प्रदेश या देश में कहीं ओर खुले बोर नहीं है क्या। क्या खुले बोरों को बंद कराने के लिए पूरे प्रदेश में प्रयास किए जा रहे है। जो लोग जिम्मेदार है, उनके खिलाफ कार्रवाई हो रही है या नहीं। दूसरी बात बच्चें के गिरने के बाद सेना और यंत्रों की मदद से ईश्वर कृपा से बच्चों को सुरक्षित बचा लिया गया। लेकिन हर बार ऐसा हो पाता है। कई बच्चों को ख्ुाले बोरों से जान गवाना पड़ी है। फिर एसडीएम रजक ने बेहतरीन मिसाल पेश करते हुए रोशन की पढ़ाई की जिम्मेदारी ली है। क्या प्रदेश में जब तक बच्चे किसी घटना का शिकार न होंगे उनकी पढ़ाई की जिम्मेदारी कोई लेगा हीं नहीं। कम से कम ऐसा हर शहर गांव में देखा जा रहा है। जहां बच्चे शिक्षा सें आज भी वंचित है। जिन्हें आर्थिक, शैक्षिक और बौद्धिक समानता का सहारा नहीं मिल पा रहा है। अलबत्ता वे ही बालक बड़े होकर अपराध, नशे की तरफ कदम रख देते है। तब हम सोचते है कि इन्हें सजा क्या, कैसे और कितनी दी जाए। जिसके लिए राज्य सरकारे विधानसभाओं में बिल लाती है।