Saturday, November 8

भोपाल–नेत्रहीन बना विद्वान- नौकरी के लिए खा रहा धक्के ..अधिकारी खिलवा रहे चक्कर

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भोपाल।   नौकरी के लिए अरुण, मुख्यमंत्री, उच्च शिक्षा मंत्री, उच्च शिक्षा आयुक्त उमाकांत उमराव, आयुक्त नि:शक्तजन, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के वरिष्ठ अफसरों से मिल चुका है, लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगी नेत्रहीन अरूण ने बीए, एमए, एफफिल के बाद दो बार राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) पास की, मोबाइल की मदद से संस्कृत की पढ़ाई की। इतना पढ़ने-लिखने के बाद नौकरी की बारी आई तो मुख्यमंत्री से लेकर अफसर तक उसे इंदौर से भोपाल के बीच धक्के खिलवा रहे हैं। कॉलेज में पढ़ाने के लिए गेस्ट फैकल्टी की मेरिट लिस्ट में नाम होने के बावजूद उसका हक मारकर सामान्य कैंडीडेट को दे दिया गया।
महू के न्यू उमरिया कालोनी में रहने वाला अरुण कुमार यादव (30) जन्म से ही दृष्टिहीन हैं। मूल रूप से बिहार के रहने वाला अरूण 13 सालों से मप्र में रहकर पढ़ाई कर रहा है। ब्रेल लिपि से उसने बीए, संस्कृत में एमए, एमफिल पास की। उसके बाद दो बार नेट क्वालीफाई हुआ, अभी पीएचडी चल रही है। उसके दो इंटरनेशनल रिसर्च पेपर प्रकाशित हो चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार शासकीय नौकरी में दृष्टिहीन के लिए 2 प्रतिशत का आरक्षण भी है। इसके बावजूद वह अतिथि विद्वान की साधारण सी नौकरी के लिए भी भटक रहा है।
मुख्यमंत्री की बात को ठुकराया अफसरों ने
अतिथि विद्वान की नौकरी के लिए उसने अगस्त में ही मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को आवेदन दिया। उसपर जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो सितंबर में फिर रिमांइडर दिया, तब सीएम ने उससे 27 सितंबर को मुलाकात की। उन्होंने उसकी नियुक्ति महू के शासकीय कॉलेज में करने की बात कही, लेकिन उसपर अमल नहीं हुआ।
मोबाइल पर सुनकर की पढ़ाई
अरूण ने बताया,’संस्कृत के जिस विषय पर मैंने एमफिल की, उसकी किताबें ब्रेल लिपि में नहीं थी। तब शासकीय संस्कृत कॉलज की प्रोफेसर वंदना नापड़े ने मोबाइल पर ही इस विषय का पढ़ाया। मेरी पढ़ाई भी दान के पैसों से हुई। उसके बाद पिछले साल धार के एक महाविद्यालय में मुझे अतिथि विद्वान के रूप में पढ़ाने का मौका मिला, इस वजह से मेरी शादी भी हो गई। इस साल वह नौकरी भी नहीं रही। अब स्थिति यह है कि अपनी विकलांग बीबी के साथ में उस किराए के मकान में रह रहा हूं, जिसका 5 महीने से किराया तक नहीं गया।’