
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें एक शिक्षक के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले को पीडि़ता के पिता और शिक्षक के बीच समझौते के आधार पर समाप्त कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों को निजी मामलों के रूप में नहीं माना जा सकता है, जिन्हें समझौते के आधार पर खारिज किया जा सकता है। ऐसे अपराधों के सामाजिक प्रभाव होते हैं और न्याय के हित में कार्यवाही जारी रहनी चाहिए।
बेंच ने कहा कि हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि हाईकोर्ट इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचा कि इस मामले में पक्षों के बीच विवाद सुलझाया जाना आवश्यक है और सद्भाव बनाए रखने के लिए प्राथमिकी और उसके संबंध में आगे की सभी कार्यवाहियां रद्द कर दी जानी चाहिए। जब स्कूल एक शिक्षक द्वारा इस तरह की हरकत की गई तो इसे एक निजी प्रकृति का अपराध नहीं माना जा सकता जिसका समाज पर कोई गंभीर असर नहीं हो। बच्चों के खिलाफ ऐसे अपराधों को जघन्य और समाज के खिलाफ अपराध माना जाना चाहिए। ग्रामीणों की अपील को स्वीकार करते हुए शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के एफआइआर रद्द करने के आदेश को पलट दिया और कहा कि आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रहे।