महाभारत और पानीपत के एतिहासिक युद्धों की भूमि हरियाणा में विधानसभा चुनाव का भीषण ‘रण’ छिड़ा हुआ है। भाजपा जीत की हैट्रिक लगाकर 10 साल पुराना किला बचाने के लिए सियासत के हर ‘हथियार’ का इस्तेमाल कर रही है। कांग्रेस सत्ता के एक दशक के सूखे को खत्म करने के लिए अपने तरकश से आरोपों के साथ वादों के तीर निकाल कर दाव चल रही है लेकिन सच्चाई यही है कि चुनाव जातिगत समर्थन के इर्द-गिर्द सिमटा हुआ है। भाजपा को गैर-जाट मतों पर भरोसा है तो कांग्रेस को जाट वोटों के एकमुश्त समर्थन की आस है। ऐसे में सत्ता की चाबी करीब 21 फीसदी दलित मतों के पास है। दोनों प्रमुख दल अपने समर्थक मतों में टूट को बचाते हुए दलितों का समर्थन हासिल करने को जी-जान से जुटे हैं। प्रमुख मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में ही लेकिन उनके अलावा चौधरी देवीलाल की विरासत लिए चौटाला परिवार दो अलग-अलग पार्टियों से उतर कर अपना दम दिखाने में जुटा हुआ है। हरियाणा में भाजपा को चार माह पहले हुए लोकसभा चुनाव में झटका लगा था जब उसे 10 में से केवल पांच सीट मिली। लोकसभा चुनाव में पांच सीटें जीतने से कांग्रेस को वापसी की उम्मीद बंधी है। दोनों ही दल बागियों के खड़े होने से बिगड़े समीकरणों से जूझ रहे हैं। कुछ सीटों पर बागी मजबूत भी दिख रहे हैं। प्रदेश की सभी 90 सीटों पर पांच अक्टूबर को होने वाले चुनाव के लिए चौपालों-पंचायतों व मंडियों में प्रचार चरम पर है लेकिन सड़क पर चुनाव प्रचार का शोर शराबा नहीं दिखता। भाजपा ने गैर जाट सियासत को आगे बढ़ाते हुए ओबीसी को अपने साथ रखने की रणनीति अपनाई है। जाटों के टिकट 20 से घटाकर 16 किए गए। गैर-जाट मतदाताओं में भाजपा का यह नरेटिव सफल भी दिख रहा है। रोहतक क्षेत्र के कलानौर विधानसभा मुख्यालय के अरूण अरोड़ा का कहना है कि इस क्षेत्र में पंजाबी काफी संख्या में है। भले ही भाजपा ने ज्यादा अच्छे काम नहीं किए, लेकिन अपने अस्तित्व को बचाने के लिए उसके साथ जाना ही पड़ेगा। भाजपा दलितों वोटों में सेंधमारी करने के लिए कांग्रेस दिग्गज कुमारी शैलजा के अपमान करने के मुद्दे को काफी उभार रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी अपनी चुनावी सभाओं में कांग्रेस में आंतरिक फूट के मुद्दे को हवा दे रहे हैं। फिलहाल रोहतक बैल्ट में जमीन पर इसका असर नहीं दिखता लेकिन अंबाला-कुरुक्षेत्र में यह असर डाल सकता है।