जमानत की शर्तों के उल्लंघन पर जमानत आदेश स्वत: रद्द होने पर हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है। जस्टिस विशाल धगट की एकलपीठ ने माना कि जमानत आदेश रद्द करने से सीधे व्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित होती है। उसके मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं। किसी की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाला कोई भी आदेश सुनवाई का उचित अवसर देने के बाद पारित किया जाना चाहिए। सुनवाई का उचित अवसर मौलिक अधिकार है। इसी के साथ हाईकोर्ट ने अपने पुराने आदेश को वापस ले लिया।
MP High Court : हाईकोर्ट ने अपने पुराने आदेश को वापस लिया
याचिका के अनुसार, दमोह में धोखाधड़ी और जालसाजी के मामले में हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत दी थी। शर्त रखी थी कि उसे हर माह थाने में हाजिरी देनी होगी। ऐसा न होने पर जमानत स्वत: रद्द हो जाएगी। पुलिस की रिपोर्ट के बाद उसे जेल भेजने के आदेश हुए। इसे चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया-कोरोना महामारी में घर से दमोह थाने की दूरी व पिता के खराब सेहत की वजह से वह थाने नहीं जा सका। इससे जमानत रद्द होने से मौलिक अधिकारों पर असर पड़ा है।