गुजरात में पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा को सभी 26 सीटों पर फतह मिली, वहीं विपक्षी कांग्रेस दस वर्षों से कोई भी सीट नहीं जीत सकी है। भाजपा जहां फिर से सभी सीटें हथिया कर जीत की हैट्रिक लगाना चाहती है, वहीं कांग्रेस आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर हैट्रिक को रोकने के लिए दमखम लगाए हुए है। राज्य में पिछले दो चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 59.05 फीसदी वोट प्राप्त किए, वहीं 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 62.21 फीसदी पहुंच गया। वहीं कांग्रेस क्रमश: 32.86 और 32.11 फीसदी वोट प्राप्त करके भी एक सीट के लिए तरसती रही। 2014 में भाजपा कांग्रेस से वोट शेयर में 30 फीसदी आगे थी वहीं 2019 में 26 फीसदी की बढ़त बनाए हुई थी।
इससे पहले 2009, 2004 और 1999 के चुनावी आंकड़ों को देखने से यह लगता है कि कांग्रेस का वोट शेयर जब भी 40 फीसदी से ऊपर गया है तब -तब पार्टी को सीटें प्राप्त हुई है। 2009 में कांग्रेस को 11 सीटें मिली थीं और उसे 43.38 फीसदी वोट हासिल हुए थे जबकि भाजपा को करीब 3 फीसदी ज्यादा वोट मिले थे और पार्टी को 15 सीटें मिली थीं। 2004 में भी कमोबेश यही स्थिति देखने को मिली। भाजपा को तब 45.02 फीसदी वोट के साथ 14 सीटें प्राप्त हुई और कांग्रेस को 43.86 फीसदी वोट के साथ 12 सीटें मिलीं।
रणनीति बदली
भाजपा अपने मजबूत गढ़ गुजरात में जमीनी स्तर पर लगातार अपनी पैठ मजबूत करने पर काम कर रही है। इसके लिए वह चुनाव का इंतजार नहीं करती। भाजपा संगठन हमेशा सक्रिय रहता है। इसका नतीजा है कि भाजपा का जनजुड़ाव ज्यादा है, वहीं कांग्रेस का जनाधार खिसकता जा रहा है। इसलिए चुनावों में वह भाजपा का मुकाबला नहीं कर पाती। इस बार कांग्रेस ने रणनीति बदली है। आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर उसे दो सीटें दी हैं। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में जब आप अकेले मैदान में थी तो पार्टी को 1.17 फीसदी वोट मिले ही थे, लेकिन गत विधानसभा चुनाव में पार्टी को करीब 13 फीसदी वोट मिले थे। अब यह तो समय ही बताएगा कि दोनों के गठबंधन को एक साथ कितना वोट शेयर मिलता है। तय है कि सीटें हासिल करने के लिए गठबंधन को पूरा जोर लगाना पड़ेगा। भाजपा का जनाधार कमजोर करना आसान नहीं है।
वोट का अंतर
और सीटें वर्ष 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 52.48 फीसदी वोट लेकर 20 सीटें झटकी थीं वहीं कांग्रेस को 45.44 फीसदी वोट मिले थे। इसके बावजूद पार्टी को सिर्फ 6 सीटें ही प्राप्त हुई थीं। वोटों का मामूली अंतर भी सीटों में बड़ा अंतर पैदा कर सकता है।