तिब्बती बौद्ध धर्म गुरु और आध्यात्मिक नेता दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो 22 जनवरी को 13 साल बाद सिक्किम पहुंचे थे। सोमवार को वह पूर्वी सिक्किम में सेना के लिबिंग हेलीपैड पर उतरे। वहां उनका स्वागत मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने किया। अपने इस दौरे के पहले दिन वह निर्वासित तिब्बती संसद, तिब्बती सेटलमेंट ऑफिस और स्थानीय तिब्बती सभा के कुछ सदस्यों से भी मिले। इसके बाद मंगलवार को उन्होंने नाथुला में भारत-चीन सीमा से लगभग 50 किमी दूर पलजोर स्टेडियम में धर्म गुरु आचार्य ज्ञालसे थोकमे संगपो की ओर से लिखे ‘बोधिसत्वों के 37 अभ्यास’ नामक ग्रंथ पर ज्ञान दिया।
क्या है विवाद
दलाई लामा के सिक्किम पहुंचते ही कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गईं थी। उनकी इस यात्रा को भारत-चीन में तनाव के बीच ड्रैगन को इंडिया की तरफ से कड़ा संदेश देने के रूप में भी देखा जा रहा है। दरअसल, चीन दलाई लामा को दुश्मन मानता है। जब चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया था तब दलाई लामा और उनके समर्थकों को भारत ने ही शरण दी थी। चीन उसी समय से भारत से और नाराज भी हो गया था। वैसे, चीन अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के बड़े हिस्से को भी अपना बताता चला रहा है। इससे पहले भी वह इन दोनों राज्यों में दलाई लामा की यात्रा पर कड़ी आपत्ति जता चुका है।
यह दौरा क्यों रहा खास
भारत और चीन के बीच पिछले 2 साल से तनातनी जारी है। तनाव के बीच दलाई लामा का सिक्किम का दौरा करना। साथ ही इस दौरे के दौरान वहां खास तौर पर तिब्बत से जुड़े लोगों से मिलना सीधे तौर पर चीन को चिढ़ाने जैसा है। इस दौरे से ये कयास हैं कि भारत ने चीन को मैसेज देने की कोशिश की है कि सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश पर उसके दावे को भी गंभीरता से नहीं लेता है। साथ ही वह चीन से नहीं डरता है।