‘राजनेता ब्यूरोक्रेट नहीं बन सकता, लेकिन ब्यूरोक्रेट राजनेता बन सकता है।’ एक फिल्म का यह डायलॉग अक्सर चुनावों में चरितार्थ होता दिखता है। जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत अनुसूचित जातियों/जनजातियों को मिली आरक्षण की व्यवस्था नौकरशाही में रहते हुए राजनेता बनने का सपना देखने वालों का रास्ता बना रही है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में प्रमुख दलों से लड़नेवाले 12 पूर्व नौकरशाहों पर नजर डालने से यह तस्वीर साफ हो रही है। राजस्थान में छह पूर्व नौकरशाह चुनाव मैदान में हैं, जिनमें चार आरक्षित सीटों पर हैं। मध्यप्रदेश में प्रमुख दलों से लड़ने वाले चार पूर्व नौकरशाहों में तीन आरक्षित सीटों से किस्मत आजमा रहे हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ जिन दो सीटों पर पू्र्व नौकरशाह चुनाव मैदान में हैं, उनमें एक आरक्षित है।
राजस्थान में ये पहली बार चुनावी जंग में उतरे
राजस्थान में तीन पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। तीन वर्तमान विधायक हैं। पहली बार चुनाव लड़ने वालों में निरंजन आर्य, चंद्र मोहन मीना व पितराम काला शामिल हैं। चुनाव लड़ रहे पूर्व अधिकारियों में से चार अधिकारी अनुसूजित जनजाति व दो अनुसूचित जाति से आते हैं। हरीशचंद्र मीना व ओमप्रकाश हुड़ला सामान्य सीट से चुनाव मैदान में हैं।
1. हरीशचंद्र मीनाः पूर्व डीजीपी – पहली बार दौसा से भाजपा के टिकट पर सांसद बने। इसके बाद वर्ष 2018 में कांग्रेस के टिकट पर देवली उनियार (सामान्य सीट) से विधायक बने। इस बार दोबारा इसी सीट से विधायक का चुनाव लड़ रहे हैं। इनके सामने गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के विजय बैंसला भाजपा से चुनाव मैदान में हैं।
2. निरंजन आर्य, पूर्व मुख्य सचिव – सोजत (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित ) से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। यहां से वर्ष 2018 के चुनाव में उनकी पत्नी संगीता आर्य कांग्रेस की ही उम्मीदवार थीं जो हार गईं। मुख्य सचिव के पद से रिटायर होने के बाद निरंजन आर्य मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सलाहकार रहे। वह लगातार अपने क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं।
3. लक्ष्मण मीना, सेवानिवृत्त आईपीएस – वर्ष 2013 में कांग्रेस के टिकट पर बस्सी (अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित) से विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। वर्ष 2018 में निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत गए। इस बार वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
4. चंद्रमोहन मीना, सेवानिवृत्त आईएएस – भाजपा के टिकट पर बस्सी से चुनाव में उतरे हैं। यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। उनके सामने लक्ष्मण मीना मैदान में हैं।
5. पितराम काला, सेवानिवृत्त अधिकारी (शिक्षा विभाग) – कांग्रेस के टिकट पर पिलानी (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित) से चुनाव लड़ रहे हैं। चुनाव से कुछ समय पहले ही उन्होंने सेवानिवृत्ति ली है। संबंधित जिले में ही लंबे समय से पदस्थापित थे।
6. ओमप्रकाश हुड़ला – सेवानिवृत्त आयकर अधिकारी – महुवा से वर्ष 2013 में भाजपा के टिकट पर विधायक बने। इसके बाद वर्ष 2018 में निर्दलीय जीते। वर्तमान सरकार के संकट के समय साथ दिया। ऐसे में इस बार कांग्रेस ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया है।
मध्यप्रदेश में नहीं मिलती सफलता
मध्यप्रदेश में अधिकतर अफसर चुनावी रणभूमि में अपना परचम लहरा पाने में सफल नहीं हो पाते हैं। इस बार पूर्व आइएएस वरदमूर्ति मिश्रा की पार्टी जरूर चुनावी मैदान में है लेकिन उनकी पार्टी से कोई अफसर चुनाव नहीं लड़ रहा। 2018 में पूर्व अफसरों ने सपाक्स पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा था लेकिन कोई भी जीत नहीं पाया। संयुक्त मध्य प्रदेश के समय राजनीति में उतरे अजीत जोगी ही सबसे सफल रहे हैं।
1- रमेश सिंह, पूर्व डिप्टी कलक्टर – अनूपपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने रमेश सिंह शहडोल सहित आदिवासी क्षेत्रों में डिप्टी कलेक्टर रह चुके। दो साल पहले इस्तीफा देकर राजनीति में सक्रिय हुए। आदिवासियों के बीच शिक्षित चेहरा हैं। पत्नी अनूपपुर जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। इनके सामने भाजपा ने 33 वर्ष से राजनीति में सक्रिय और मंत्री बिसाहूलाल सिंह को प्रत्याशी बनाया है।
2- एमपी चौधरीः रिटायर्ड डीआईजी – सेवानिवृत्त आईपीएस रिटायर्ड डीआईजी एमपी चौधरी सामान्य सीट नरसिंहपुर से बसपा के प्रत्याशी हैं। यहां से केद्रीय मंत्री और भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद पटेल चुनाव लड रहे हैं। कांग्रेस ने लाखन सिंह को उतारा है।
3- डॉ अशोक मर्सकोलेः पूर्व मेडिकल अधिकारी – डॉ अशोक मर्सकोले ब्लाक मेडिकल अधिकारी रहे हैं। 2018 में कांग्रेस से निवास सीट से विधायक रहे। इस बार सीट बदलकर मंडला से कांग्रेस के प्रत्याशी बनाया है। इसके खिलाफ पूर्व राज्यसभा सांसद संपत्तिया उइके भाजपा से प्रत्याशी हैं। यह एसटी रिजर्व सीट है।
4- राजेंद्र मेश्रावः पूर्व मेडिकल अधिकारी – पूर्व ब्लॉक मेडिकल अधिकारी हैं। 2018 के चुनाव के समय वीआरएस के लिए आवेदन दिया था, पर समय से मंजूर नहीं हो पाया। इस बार भाजपा ने मौजूदा विधायक टिकट काटकर राजेंद्र मेश्राम को दिया है। यह एससी रिजर्व सीट है।
मप्र में दस सीट पर आईएएस की पार्टी
– पूर्व आइएएस वरदमूर्ति मिश्रा ने नौकरी छोडक़र वास्तविक भारती पार्टी (वाभापा) बनाई। यह पार्टी दस सीटों गोविंदपुरा, गोटेगांव, बरगी, कोतमा, जैतपुर, उज्जैन दक्षिण, बोहरीबंद, पवई व बसौदा पर चुनाव लड़ रही है। वरदमूर्ति खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। साथ ही उनकी पार्टी से कोई ब्यूरोक्रेट चुनाव मैदान में नहीं है।
दो अधिकारी लगे हैं लाइन में
– मध्यप्रदेश की आमला सीट से डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे ने कांग्रेस का टिकट चाहा था। नौकरी से इस्तीफा भी दे दिया लेकिन टिकट नहीं मिल पाया है। इस्तीफा स्वीकार होने मे देरी से प्रत्याशी घोषित कर दिया।
– इसी तरह आइएएस अफसर राजीव शर्मा ने भी चुनावी समय में ही नौकरी छोड़ी लेकिन वह भी किसी सीट पर चुनावी मैदान में नहीं उतरे। यहां तक कि किसी पार्टी से भी अभी तक नहीं जुड़ेे हैं।
भाजपा में पहुंचे आधा दर्जन पूर्व अफसर
– मध्य प्रदेश में ही रघुवीर श्रीवास्तव, कवींद्र कियावत, वेदप्रकाश, एसएन सिंह चौहान, रवींद्र मिश्रा सहित आधा दर्जन अफसरों ने सेवानिवृत्ति के बाद भाजपा का दामन थामा है। लेकिन, इनमें से कोई भी चुनावी मैदान में नहीं है।
छत्तीसगढ़ में चुनावी मैदान में भी डटे हैं अधिकारी
1- नीलकंठ टेकामः पूर्व आईएएस – भाजपा ने कलेक्टर की नौकरी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए आईएएस नीलकंठ टेकाम को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित केशकाल से टिकट दिया है। टेकाम लंबे समय तक कोंडागांव और केशकाल में कलेक्टर रहे हैं। इनका कांग्रेस के वर्तमान विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष संतराम नेताम से मुकाबला है।
2- ओपी चौधरीः पूर्व कलक्टर – भाजपा ने पूर्व आइएएस ओपी चौधरी को रायगढ़ से टिकट दिया है। चौधरी पिछले विधानसभा चुनाव के पहले कलेक्टर की नौकरी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। पिछली बार हार गए चौधरी का इस बार चुनाव में कांग्रेस के वर्तमान विधायक प्रकाश नायक से मुकाबला है।