केन्या। आज के दौर में महिलाओं को समाने अधिकार देने का दावा किया जाता है, लेकिन अफसोस की बात तो ये है कि ऐसे वक्त में भी दुनिया के तमाम हिस्सों में महिलाएं बुरे दौर से गुजर रही हैं। इसके लिए कहीं समाज में फैली कुरीतियां जिम्मेदार हैं तो कहीं सोच। दुनिया के 30 ऐसे देश हैं जहां बच्चियों और महिलाओं के लिए खतना परिच्छेन जैसी परंपरा लगातार अभ्यास में है। अब संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस पर रोक लगाने का संकल्प लिया है। यूएन ने इसे लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन बताया है। खासकर अफ्रीका और मिडिल ईस्ट के देशों में खतना की परंपरा बिल्कुल आम है। इन देशों में ये मान्यता है कि लड़कियों को शादी के लिए तैयार करने के लिए क्लिटोरिस को काटना जरूरी होता है। इसका नतीजा ये हो रहा है कि महिलाओं में जननांग विकृतियां समेत स्वास्थ से जुड़ी तमाम तकलीफों की बात सामने आ रही हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के आंकड़ों की मानें तो 125 मिलियन से ज्यादा लड़कियों और महिलाओं को जननांग विकृतियों के कारण छोड़ा दिया जाता है। फोटोग्राफर मैरी क्वांटेमी इस बात की गवाह हैं कि केन्या के मसाई आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली दो बहनें इसीना और नसीरियान किस तरह पिछले नवंबर में इस गैरकानूनी पंरपरा का शिकार हुई हैं। खतना संस्कार के कुछ हफ्ते पहले ही फोटोग्राफर लड़कियों के पिता से मिलीं और उनसे पूछा कि क्या वो होने वाले संस्कार और रस्मों के कार्यक्रम में शामिल होकर दस्तावेज तैयार कर सकती हैं। लड़की के परिवारवाले राजी हो गए, क्योंकि उन्हें लगा कि जिस परंपरा का वो इतना सम्मान करते हैं, उसे लोगों के बीच ले जाने में कोई दिक्कत नहीं है। हालांकि फोटोग्राफर मैरी ने अपनी रिपोर्ट में असली नामों का इस्तेमाल नहीं किया। मैरी संस्कार के एक दिन पहले लड़कियों के घर पहुंची। संस्कार से पहले लड़कियों के पूरे शरीर के बाल साफ किए गए। इसके बाद उन्हें गाय के दूध से नहलाया गया। इस मौके पर घर में दावत का भी इंतजाम होता है। खतने के लिए लड़की तैयार तो होती है, लेकिन उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं होता। ऐसी मान्यता है कि खतने के दौरान अगर लड़की चिल्लाती है तो इसे कमजोरी माना जाएगा और अगर दर्द सहन कर लेगी तो भी ठीक नहीं होगा। छोटे-से समुदाय में लड़कियों के पास किसी भी चीज के लिए इनकार करने का सामथ्र्य नहीं होता। मैरी बताती हैं कि वह सबसे खतरनाक दृश्य था जब खतने का संस्कार शुरू हुआ। इसे लड़की के घर पर ही किया जाता है। इसके बाद सेहत में सुधार के लिए चार हफ्तों तक लड़की आराम करती है। इसके साथ ही उसे जानवर का खून दिया जाता है, ताकि जो खून बहा है उसकी पूर्ति हो जाए। मैरी ने बताया कि गांव के कई बुजुर्ग लोगों ने एफजीएम महिला जननांग छेदन को समुदाय के लिए गौरव बताया। गांव के एक बुजुर्ग ने कहा कि वो इस परंपरा को जिंदा रखना चाहते हैं। जब फोटोग्राफर मैरी ने लड़कियों से बात की तो लड़कियों की बातों से लगा कि वो इस परंपरा को आगे स्वीकार नहीं करना चाहतीं। मैरी कहती हैं इन तस्वीरों के जरिए वो दुनिया को याद दिलाना चाहती हैं कि एफजीएम या खतने की परंपरा अब भी जारी है। इसके बारे में अगर नहीं लिखा गया तो तमाम देशों में लड़कियां और महिलाएं इसी तरह प्रभावित होती रहेंगी।