महाराष्ट्र में महिलाओं को लेकर बयान देना वाला कोई पुरूष नहीं, बल्कि एक महिला है। यह पहला मौका नहीं है। जब एक राजीनतिज्ञ ने महिला यौनशोषण के मुद्दे पर विवादास्पद बयान दिया हो। इससे पहले भी कई बार महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों, अधिकारों और पहनावे पर कटाक्ष किए गए हैं। ऐसे मामलों में हर बार नैतिकता की धज्जियां भी उड़ा दी गईं। एक नेता ने तो सारी मर्यादा ताक पर रखते हुए महिला मुख्यमंत्री के लिए कहा था आपके साथ रेप हो तो कितना पैसा लोगी। यहीं नहीं एक केंद्रीय मंत्री ने भी कुछ ऐसा ही किया था मंत्री ने सवाल से भड़के और पलटकर महिला पत्रकार पर सवाल दागा कि तुम्हारा भी रेप हुआ है? टिप्पणी करने वालों में सिर्फ नेता ही नहीं, बल्कि सामाजिक संगठन के बड़े नेता और वरिष्ठ पुलिस अफसर भी शामिल थे। नागपुर में एनसीपी नेता और महाराष्ट्र आयोग की सदस्य आशा मिर्जे के विवादास्पद बयान से महिलाएं फिर निशाना बनीं। उन्होंने यह बयान पार्टी महिला कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में कहा था कि महिलाओं के साथ होने वाले शारीरिक शोषण के लिए उनका पहनावा और व्यवहार जिम्मेदार होता है। आशा ने दिल्ली में गैंगरेप की पीडि़ता पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि क्या दामिनी वास्तव में रात की 11 बजे अपने दोस्त के साथ फिल्म देखने गई थी? एनीसीपी महिला नेता ने मुंबई में शक्ति मिल कैंपस में रेप की शिकार युवा पत्रकार पर भी सवाल उठाते हुए पूछा कि वह शाम 6 बजे सुनसान जगह पर क्यों गई? विवाद बढऩे के बाद उन्होंने देर शाम तक अपनी सफाई देते हुए माफी भी मांग ली। आप यहां कुछ नेताओं और बड़ी हस्तियों के ऐसे बड़बोल बयानों को जानेंगे, जिनसे महिलाओं की मर्यादा और नैतिकता के खिलाफ थे। हम भी छात्र रहे हैं और कॉलेज गए हैं, जानते हैं कि कॉलेज के बच्चे कैसे होते हैं। रात में डिस्को जाना और कैंडल लेकर सड़कों पर उतरना फैशन हो गया है। सुंदर-सुंदर महिलाएं सज-धज कर बच्चों के साथ विरोध करने आती हैं। मुझे नहीं लगता कि वे स्टूडेंट होती भी हैं। राजनीतिक पार्टियां अपने हितों को साधने के लिए इस तरह के आंदोलन करवा रहीं हैं। (दिल्ली में गैंग रेप के संदर्भ में अंत में माफी मांगी)
महिलाओं के खिलाफ अपराध शहरी भारत में हो रहे हैं और यह शर्मनाक है। लेकिन ऐसे अपराध भारत या देश के ग्रामीण इलाकों में नहीं होते हैं। आप देश के गांवों और जंगलों में जाएं तो वहां गैंग रेप और सेक्स क्राइम की घटनाएं नहीं होती है। ये कुछ शहरी इलाकों में होती। ऐसे अपरोध भारत में नहीं लेकिन इंडिया में अक्सर होते हैं। (संघ प्रमुख ने सिल्चर में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भारतीय मूल्यों की बात करते हुए यह टिप्पणी की थी)
जब महिला हिंसा को रोकने का कानून बनाया जा रहा था, तभी मैंने कहा था कि एंटी रेप बिल की वजह से अधिकारी महिलाओं को नौकरी पर रखने से कतराएंगे। मुझे पता चला है कि कई अधिकारी महिला पीए रखने से कतराते हैं। लोग महिलाओं को नौकरी पर रखने से इसलिए घबराते हैं कि पता नहीं कब, कहां और किस वक्त उन पर झूंठे आरोप लग जाएं। (खीरी लखीमपुर में लड़की से रेप के मामले पर बात करते हुए तरूण तेजपाल पर दर्ज यौनशोषण के केस के संदर्भ में)
अब सबकुछ खुला है खुले बाजार में विकल्पों की तरह: लड़के-लड़कियां एक दूसरे का हाथ पकड़ लेते थे तो उनके माता-पिता उन्हें डांटते थे पर अब सब कुछ खुला है। खुले बाजार में विकल्पों की तरह। (खाप पंचायतों के विवादित बयान के बाद ममता बनर्जी ने यह विवादित कमेंट फेसबुक पर पोस्ट किया था।)