Sunday, September 28

केन-बेतवा के अलावा 30 अन्य नदियों को जोड़ने की तैयारी, 8 परियोजना की टीआरपी तैयार

भोपाल

राष्ट्रीय जल संरक्षण प्राधिकरण (एनडब्ल्यूडीए) ने देश की 30 बड़ी नदियों को आपस में जोड़ने की रूपरेखा तैयार की है। प्राधिकरण अब दो या दो से अधिक राज्यों की बैठक कर इन नदियों को जोड़ने पर विचार करेगी। इसमें राज्यों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के साथ ही आपदा से निपटने के रोडमैप से अवगत कराने का काम शुरू होगा। इन परियोजनाओं में मध्यप्रदेश की राष्ट्रीय नदी जोड़ो प्रोजेक्ट में केन-बेतवा लिंक परियोजना के अलावा पार्वती-कालीसिंध-चंबल तथा पार्वती-कुन्नु-सिंध शामिल हैं। महानदी-गोदावरी और गोदावरी-कृष्णा का प्रदेश में कैचमेंट है।

प्राधिकरण के निदेशक भोपाल सिंह ने बताया कि केन-बेतवा लिंक परियोजना सहित आठ परियोजनाओं की डीपीआर और 22 परियोजनाओं की फिजिबिलिटी सर्वे कर लिया है। नदियों को जोड़नेे से प्रदेश में बिजली तथा सिंचाई क्षमता बढ़ाने के साथ बाढ़ व सूखे की समस्या से निजात मिलेगी।

क्योंकि पिछले कई वर्षों से देखा जा रहा है कि कई राज्यों में बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाती है और कइयों में सूखे की स्थितियां रहती हैं। राज्य बारिश के पानी को 30 फीसदी भी संरक्षित कर उसका उपयोग नहीं कर पाते हैं। नदी जोड़ो प्रोजेक्ट पर दो या उससे अधिक राज्यों को मिलकर काम करना होगा। इसके बाद ही इन परियोजनाओं के लिए 80-90%राशि केन्द्र सरकार देगी।

इनका प्रदेश में आएगा कैचमेंट और मिलेंगी सहायक नदियां-
– गोदावरी : अनूपपुर और अमरकंटक क्षेत्र की नदियां
– महानदी : मध्यप्रदेश के बालाघाट क्षेत्र की नदियां

मध्यप्रदेश और अन्य राज्याें की परियोजना-
: केन-बेतवा लिंक परियोजना: मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश
: पार्वती-काली सिंध-चंबल: मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश व राजस्थान
: पार्वती-कुन्नु-सिंध: मध्यप्रदेश और राजस्थान

नदियों को जोड़ने से प्रदेश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। बिजली के साथ सिंचाई का सौ फीसदी रकबा बढ़ाया जा सकेगा।
– जीजी सोनी, सेवानिवृत्त चीफ इंजीनियर, जल संसाधन विभाग

जल विवाद बड़ा विषय
राज्य सरकारों के बीच पानी बंटवारे को लेकर आपसी सहमति बनने के बाद ही इन परियोजनाओं को मूर्त रूप दिया जा सकता है। फिजिबिलिटी सर्वे के बाद जिन राज्यों से नदिया निकलती हैं अथवा नदियों का कैचमेंट है, उन्हें हिसाब-किताब लगाना है कि उन्हें इससे कितना फायदा और नुकसान है। कई राज्यों में सिर्फ बड़ी नदियों की सहायक नदियां हैं। इससे राज्यों को उनका पानी रोकने के लिए खुद के पैसे से बांध बनाना पड़ेगा।