इंदौर. अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने का काम प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ ने शुरू कर दिया है। पिछले दिनों उन्होंने जहां जिला प्रभारियों की नियुक्ति की, वहीं अब जल्द ही शहर और जिला कांग्रेस अध्यक्ष को भी बदला जाएगा। इसको लेकर भोपाल में कवायद शुरू हो गई है। कांग्रेसियों के अनुसार प्रदेश में जिन शहरों और जिलों के अध्यक्षों को बदला जाना है, उनमें इंदौर शहर अध्यक्ष विनय बाकलीवाल और जिला अध्यक्ष सदाशिव यादव भी शामिल है। यह दोनों अपनी कुर्सी बचाने में जुट गए हैं।
नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कांग्रेस का परफॉर्मेंस कुछ खास नहीं रहा। कारण कांग्रेस संगठन का कमजोर होना है। इसको मजबूत करने को लेकर प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ काम कर रहे हैं ताकि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मजबूती के साथ मैदान में उतर सके। इसके लिए कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे के सुधारने के लिए उन्होंने पिछले दिनों भाजपा में संगठन मंत्री की तर्ज पर जिला प्रभारी बनाए हैं। इंदौर जिले की जिम्मेदारी महेंद्र जोशी को सौंपी गई है जो कि विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस संगठन को मजबूत करने को लेकर काम करेंगे। इंदौर की शोभा ओझा को उज्जैन जिले का और रघु परमार को गुना जिले का प्रभारी बनाया गया है।
इधर, कांग्रेसियों का कहना है कि आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश के कई शहरों और जिलों के अध्यक्षों को भी बदला जाएगा। इसमें इंदौर शहर अध्यक्ष बाकलीवाल और जिला अध्यक्ष यादव भी शामिल हैं। इनके साथ ही सेक्टर प्रभारी, मंडलम और ब्लॉक अध्यक्षों को भी बदला जाएगा। इसकी तैयारी भोपाल में शुरू हो गई है। कांग्रेसियों का कहना है कि शहर और जिला अध्यक्षों को बदलने की चल रही कवायद को लेकर अपनी कुर्सी बचाने में बाकलीवाल और यादव भी जुट गए हैं। इनके अलावा शहर और जिला अध्यक्ष बनने की मंशा रखने वाले कांग्रेस नेता भी सक्रिय हो गए हैं जो कि लंबे समय से चेयर रेस खेल रहे हैं।
गौरतलब है कि 15 वर्ष तक विपक्ष में रहकर संघर्ष करने वाली कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में सरकार बनाई, लेकिन महज 15 माह में ही सरकार गिर गई और कांग्रेसियों का फिर से संघर्ष शुरू हो गया। अगले वर्ष 2023 में फिर से सत्ता हासिल करने का सपना प्रदेशाध्यक्ष नाथ देख रहे है। इसके लिए वे पार्टी की संगठात्मक मजबूती को लेकर अभी से काम पर लग गए हैं। उनका कहना रहता है कि कांग्रेस की लड़ाई भाजपा से नहीं, बल्कि उसके मजबूत संगठन से है। इसलिए अब कांग्रेस भी भाजपा संगठन की तर्ज पर काम कर रही है। अब इसका फायदा कांग्रेस को कितना मिलता है यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा।